Find the Best बैग Shayari, Status, Quotes from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos aboutसही बैग मामला क्या है, सही बैग क्या है, सही बैग कहा है, बैगी पैंट की कटिंग बताओ, पिट्ठू बैग बनाने की विधि,
Priyanshu Agnihotri
....यादें बचपन की .... बहना से लड़े, खूब झगड़े , फिर संग विद्यालय जाते थे । यदि पड़े मार विद्यालय में, तब बहना को खूब बुलाते थे । थक जाते थे जब गुरु खूब , वह नालायक कहलाते थे । तब हम विद्यालय में छोड़ बैग , बस तुरत कहीं भाग जाते थे । बस अगली बार न मार पड़े यह बार बार दोहराते थे । पर याद हमें अब तक है , हम फिर भी विद्यालय जाते थे । जब कभी छोड़ कर बैग , भाग जल्दी से घर आ जाते थे । मम्मी को कुछ शक जाता था , घर भी बेशक पिट जाते थे। पर याद मुझे अब तक है जब , मैं घर के बाहर भग जाता था , औऱ राह देख बहना की मैं , बहना के संग ही आता था ।। M₹_@gnihotri कविता
कविता
read moreRam N Mandal
ज़िंदगी उसी दिन सीखा देती है, जिस दिन बैग पीठ पे पड़ती है, चाहे बैग कितना भी पीछे खिंचे, झुक कर आगे ही बढ़ते जाना है । -Ram N Mandal #gif #zindagi
अgni
फ़ैसला (story read in caption👇) फ़ैसला सपना अपने कमरे में बिस्तर के एक तरफ कोने में बैठ कर रो रही थी और उसकी सात साल की बेटी ईशु जो अपनी माँ के जख्मों पर बड़े प्यार से दवा लगा रही थी। ये सपना के घर रोज़ होता था , उसका पति सौरव शराब पीकर आता सपना को मारता पीटता फिर जाकर सो जाता और ईशु हर बार अपने पिता के दिये जख्मों पर मरहम लगाती। सौरव पहले ऐसा नहीं था लेकिन शादी के बाद न जाने वो इतना कैसे बदल गया उसने शराब पीना शुरू कर दिया और फिर घर में मारपीट भी शुरू हो गयी। सपना ने आजतक घरवालों को ये खबर नहीं की। सौरव जैसा भी था उसका पति था
फ़ैसला सपना अपने कमरे में बिस्तर के एक तरफ कोने में बैठ कर रो रही थी और उसकी सात साल की बेटी ईशु जो अपनी माँ के जख्मों पर बड़े प्यार से दवा लगा रही थी। ये सपना के घर रोज़ होता था , उसका पति सौरव शराब पीकर आता सपना को मारता पीटता फिर जाकर सो जाता और ईशु हर बार अपने पिता के दिये जख्मों पर मरहम लगाती। सौरव पहले ऐसा नहीं था लेकिन शादी के बाद न जाने वो इतना कैसे बदल गया उसने शराब पीना शुरू कर दिया और फिर घर में मारपीट भी शुरू हो गयी। सपना ने आजतक घरवालों को ये खबर नहीं की। सौरव जैसा भी था उसका पति था
read moreUrvi Poonia
मायके जाती हूँ तो मेरा ही बैग मुझे चिढ़ाता है, मेहमान हूँ अब ,ये पल पल मुझे बताता है .. . माँ कहती है, सामान बैग में डाल लो, हर बार तुम्हारा कुछ ना कुछ छुट जाता है... घर पंहुचने से पहले ही लौटने की टिकट, वक़्त परिंदे सा उड़ता जाता है, उंगलियों पे लेकर जाती हूं गिनती के दिन, फिसलते हुए जाने का दिन पास आता है..... अब कब होगा आना सबका पूछना , ये उदास सवाल भीतर तक बिखराता है, घर से दरवाजे से निकलने तक , बैग में कुछ न कुछ भरती जाती हूँ .. जिस घर की सीढ़ियां भी मुझे पहचानती थी , घर के कमरे की चप्पे चप्पे में बसती थी मैं , लाइट्स ,फैन के स्विच भूल हाथ डगमगाता है... पास पड़ोस जहाँ बच्चा बच्चा था वाकिफ , बड़े बुजुर्ग बेटी कब आयी पूछने चले आते हैं.... कब तक रहोगी पूछ अनजाने में वो घाव एक और गहरा कर जाते हैं... ट्रेन में माँ के हाथों की बनी रोटियां डबडबाई आँखों में आकर डगमगाता है, लौटते वक़्त वजनी हो गया बैग, सीट के नीचे पड़ा खुद उदास हो जाता है..... तू एक मेहमान है अब ये पल पल मुझे बताता है.. मेरा घर मुझे वाकई बहुत याद आता है.... *🙏सभी बेटियों को समर्पित🙏*
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