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vishnu prabhakar singh

बुरा मानने की तो प्रथा ही नहीं है। #पटना कल होली खेलेगा और जीतेगा। खूब खेलना होली भईया फिसलकर एक भी रंग ना छूटे सम्भलकर। समस्त जन को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ। सबके जीवन में अपनों का संग रहे, रंग रहे...

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होली के रंग
ख़ुशी, मिलाप, भ्रमण, परिहास
ये स्वभाविकता का घोल
सहज ही आकर्षित करता है
हर आयू अपने अंदाज में
रंग में घुल जाता है
और,
इस आत्मा का श्रृंगार
रसायनिक रंगों से कर
हम रंग-बिरंगे हो जाते हैं
इस प्रथा की प्रतीक्षा
ठंडई के हाहाकार से 
एक दिवसीय से कई दिवसीय हो जाती है
हाँ जी, होली के रंग छूटते नहीं। बुरा मानने की तो प्रथा ही नहीं है।
#पटना कल होली खेलेगा और जीतेगा।

खूब खेलना होली भईया फिसलकर
एक भी रंग ना छूटे सम्भलकर।

समस्त जन को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सबके जीवन में अपनों का संग रहे, रंग रहे...

chand shayar Saifi

#अब_इश्क़ हम पे, #तरस नहीं #खाता,
वो #पटना नहीं आती, 
मैं भी #जयपुर नहीं 
 जाता...!!

 🌙

©chand shayar ishq #मोहब्बत 
#Sunrise

changed choubey

अपने-पराये कैसे कहूँ मैं गैर उसे जब टूटा था यह दिल मेरा
सब अपने ने पागल बोला उसने आकर सम्हाला था #अपने_पराये
#हिंदी #दिलफेंक_शायर 
#बिहार #पटना
 Divya Joshi Vallika Poet Namita Writer Aisha Arika

changed choubey

डूबा पड़ा है नीर से तड़पती हर एक शाम है
एक है शहर मोह्हबत का #पटना जिसका नाम है
डूबा पड़ा है हर गली जिसमे गुजरा एक एक पल 
बस देख के आंखों के आंसू थमहने  का न नाम ले।
#patna_flood #MeraShehar 

#पटना #लव #plz_help_for_बिहार

@Devidkurre

वाणी मेरी नही लेकिन विचार इनके जैसे ही है किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है? कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है? सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है चोर है, डाकू है, झूठा-मक्कार है कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है जैसे भी टिकट मिला, जहां भी टिकट मिला

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किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है? 
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है? 
सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है 
गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है 
चोर है, डाकू है, झूठा-मक्कार है 
कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है 
जैसे भी टिकट मिला, जहां भी टिकट मिला
शासन के घोड़े पर वह भी सवार है 
उसी की जनवरी छब्बीस 
उसीका पन्द्रह अगस्त है 
बाकी सब दुखी है, बाकी सब पस्त है 
कौन है खिला-खिला, बुझा-बुझा कौन है 
कौन है बुलंद आज, कौन आज मस्त है 
खिला-खिला सेठ है, श्रमिक है बुझा-बुझा 
मालिक बुलंद है, कुली-मजूर पस्त है 
सेठ यहां सुखी है, सेठ यहां मस्त है 
उसकी है जनवरी, उसी का अगस्त है 
पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है 
मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है 
फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है 
फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है 
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है 
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो 
मास्टर की छाती में कै ठो हाड़ है! 
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो 
मज़दूर की छाती में कै ठो हाड़ है! 
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो 
घरनी की छाती में कै ठो हाड़ है! 
गिन लो जी, गिन लो, गिन लो जी, गिन लो 
बच्चे की छाती में कै ठो हाड़ है! 
देख लो जी, देख लो, देख लो जी, देख लो 
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है! 
मेला है, ठेला है, भारी भीड़-भाड़ है 
पटना है, दिल्ली है, वहीं सब जुगाड़ है 
फ्रिज है, सोफा है, बिजली का झाड़ है 
फैशन की ओट है, सबकुछ उघाड़ है 
महल आबाद है, झोपड़ी उजाड़ है 
गऱीबों की बस्ती में उखाड़ है, पछाड़ है 
धत् तेरी, धत् तेरी, कुच्छों नहीं! कुच्छों नहीं 
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है 
ताड़ के पत्ते हैं, पत्तों के पंखे हैं 
पंखों की ओट है, पंखों की आड़ है 
कुच्छों नहीं, कुच्छों नहीं 
ताड़ का तिल है, तिल का ताड़ है 
पब्लिक की पीठ पर बजट का पहाड़ है! 
किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है! 
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है! 
सेठ ही सुखी है, सेठ ही मस्त है 
मंत्री ही सुखी है, मंत्री ही मस्त है 
उसी की है जनवरी, उसी का अगस्त है।

#बाबा_नागार्जुन वाणी मेरी नही लेकिन विचार इनके जैसे ही है 
किसकी है जनवरी, किसका अगस्त है? 
कौन यहां सुखी है, कौन यहां मस्त है? 
सेठ है, शोषक है, नामी गला-काटू है 
गालियां भी सुनता है, भारी थूक-चाटू है 
चोर है, डाकू है, झूठा-मक्कार है 
कातिल है, छलिया है, लुच्चा-लबार है 
जैसे भी टिकट मिला, जहां भी टिकट मिला

Mukesh Poonia

Story of Sanjay Sinha ऐसा हो ही नहीं सकता है कि बैंगन के भर्ता से दामाद के स्वागत वाली कहानी मैंने आपको पहले न सुनाई हो। पर जब कभी मैं कहीं खाने जाता हूं या कोई मेरे घर खाने आता है तो मुझे ये वाली कहानी ज़रुर याद आ जाती है। मुझे लग रहा है कि ये कहानी मैंने आपको पहले भी सुनाई है, लेकिन कहानी का मर्म इतना बढ़िया है कि दुबारा सुन लेने में भी कोई हर्ज़ नहीं। एक बार एक दामाद शादी के बाद पहली बार ससुराल गया। वहां सास ने दामाद के स्वागत में कई तरह के व्यंजन बनाए। मटर-पनीर की सब्जी, आलू-गोभी दम,

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Story of Sanjay Sinha 
 ऐसा हो ही नहीं सकता है कि बैंगन के भर्ता से दामाद के स्वागत वाली कहानी मैंने आपको पहले न सुनाई हो। पर जब कभी मैं कहीं खाने जाता हूं या कोई मेरे घर खाने आता है तो मुझे ये वाली कहानी ज़रुर याद आ जाती है। मुझे लग रहा है कि ये कहानी मैंने आपको पहले भी सुनाई है, लेकिन कहानी का मर्म इतना बढ़िया है कि दुबारा सुन लेने में भी कोई हर्ज़ नहीं। एक बार एक दामाद शादी के बाद पहली बार ससुराल गया। वहां सास ने दामाद के स्वागत में कई तरह के व्यंजन बनाए। मटर-पनीर की सब्जी, आलू-गोभी दम,

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