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ठाकुर नीलमणि

चिंगारी
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ये उजलि ये काली,
धुआ संग लाली,
लपटो से बिखरती हूई ये चिंगारी,
बस्ती को जला के मचल क़्यो रही है !

कभी इस गली तो कभी उस मोहल्ले ,
हवा मैं तैरती हुई चल रही है,
घरो से निकलकर , तो छत से फिसलकर,,
चौराहे पे जा के ....
सभंल क़्यो रही है!

ये उजली ये काली..............................रही है!

लपलपाती जिभ से कच्चे घरो को ,
छोटे - बडो को ,
दरवाजे से निकलकर तो,
खिड्र्की से फिसलकर,
खूद मे लपेटे निगल क़्यो रही है!

जख्मि झुलसे बदन ये,
चिथड्रो से कफन ये,
रातो को घरो से,
निकल कंधो पर बोझ ,
चल क़्यो रही है!

करुणा का नजारा ,
था किसका दोस सारा,
अजनबी मैं बेचारा ,
पूछ्ता किससे कि ये...
बस्ती जल क़्यो रही है!

ये उजली ये काली........................................रही है!
by - Nilmani Thakur #चिंगारी

Pradeep Kalra

“सख़्त ज़रूरत है” क्यों घुटन ज़िन्दगी में, दबे हुए सारे ज़ज़्बात है, बच्चों वाली शरारत की, अब सख्त ज़रूरत है, क्यों मुरझाते चेहरों में, झुकी झुकी से नज़र है, उठी उठी निगाहों की, अब सख्त ज़रूरत है [7] क्यों वापस लौटाते नहीं, लेते जो प्रकृति से है, #कविता

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 9 - सेवा का प्रभाव 'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
9 - सेवा का प्रभाव

'या खुदा, अब आगे को रास्ता भी नहीं है।' सवार घोड़े से कूद पड़ा। प्यास के मारे कण्ठ सूख रहा था। गौर मुख भी अरुण हो गया था। पसीने की बूदें नहीं थी, प्रवाह था। उसके जरी के रेशमी वस्त्र गीले हो गये थे। ज्येष्ठ की प्रचण्ड दोपहरी में जरी एवं आभूषणों की चमक नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर रही थी। वे उष्ण हो गये थे और कष्ट दे रहे थे। भाला उसने पेड़ में टिकाया, तरकश एवं म्यान खोल दी। कवच जलने लगा था और उसे उतार देना आवश्यक हो गया

slni

हो रातों का अंधियारा या दिन की उजली धूप हो
ना घूरे मुझको तीखे नैन ना आंखे उनकी धूर्त हो
कोमल नहीं मै अबला नहीं लेकिन नारी का सम्मान हूं
उड़ना मुझे ऐसे जहां में जहां बेटी होना 
आशाओं का एक दीप हो
ना जमाने की कातर नज़रों का खौफ हो
ना कोख में ही दफन होने का डर
बस मिल जाएं वो पंख कि पापा मै भी
चिड़िया सी उड जाऊं
और बेखौ फिरूं मै
फिर चाहे हो रातो का अंधियारा  दिन की उजली
धूप हो

"सलोनी" #बेखौफ

Nikhil Kumar

क्या लिखूँ तुम्हें.... #poem

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क्या लिखूँ तुम्हें ओ हृदय प्रिये,
उजली काया कंचन लिख दूँ,

फूलों का पुष्पाहार लिखूँ,
या फूलों का उपवन लिख दूँ,

पुरवा की ठण्डी हवा लिखूँ,
या तूफाँ का मंजर लिख दूँ,

मधु लिखूँ तुम्हें मीठेपन सा,
या नशे की मधुशाला लिख दूँ,

नैनों को झील समान लिखूँ,
या अमृत का प्याला लिख दूँ,

क्या लिखूँ तुम्हें ओ हृदय प्रिये,
उजली काया कंचन लिख दूँ।

@निखिल क्या लिखूँ तुम्हें....

Mansoor Adab Pahasvi

#OpenPoetry 😍 कुछ दोहे आपके लिए 😍

तुमने काँटे बो दिए , रख कर सर पर ताज
दौलत शोहरत भूख में, खा जाती हैं लाज

मंज़िल तक आ ही गये, भरते भरते आह
जिसकी जितनी चाह थी, उसकी उतनी राह

उजली उजली सुब्ह से, कहनी थी ये बात
डरा नहीं पाई हमें, वो अंधियारी रात

क्या पंडत क्या मौलवी, करते फिरते जाप
मन के अंदर मैल था,  कैसे मिटते पाप #दोहे

Lata Sharma सखी

मन बंजारा सा  दिल आवारा सा, ये मेरा मन बंजारा सा,
है दिल तेरा आवारा सा,
भटकता है बस तेरे लिए,
ढूँढता है बस तुझको ही,

हां ये मन पागल सा 
दिल दीवाना सा,
कबसे तरस रहा प्यार को तेरे,
तडप रहा दीदार को तेरे...

ये मन सयाना सा,
दिल मासूम सा,
जी रहा तुझ बिन संतोष करके,
जिद कर रहा कि एक रोज मिलोगे तुम,

ये मन मेरा चाँद सा
दिल तेरा चाँदनी सा,
रह रहा यादों में उजली उजली,
बहक रहा रातों में संदली संदली।

©सखी #मन #मेरा #दिल #तेरा

Pragati Shukla

कोशुर( कश्मीर) पीर पज़ल और झेलम से घिरी हुई घाटी का हाल पुछती हु मैं बादलों से। "केसरी होते बादलों से मैंने पूछा, कोशुर का नजारा?

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कोशुर( कश्मीर) 
पीर पज़ल और झेलम से घिरी हुई घाटी का हाल पुछती हु मैं बादलों से। कोशुर( कश्मीर) पीर पज़ल और झेलम से घिरी हुई घाटी का हाल पुछती हु मैं बादलों से। 





"केसरी होते बादलों से मैंने पूछा,
 कोशुर का नजारा?

jaahir Sayyed

उजली उजली सूरत दिल काले काले

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Pihoo

आसमां उजला सा लगता हर किरन सुथरी सी लगती...#my #Poetry#❤# 😘

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देखा क्या तुमने उस घटा को जो बरस कर गई है
आसमां सुथरा सा लगता हर किरन उजली सी लगती
उस घटा से पूछना क्या घने बादल थे आए
बिजलियां सीने में कड़की फिर पवन भी शीत लाए
सर्द रातों का वो आलम होंठ भी थे कपकपाते
देख बादलों का अंधेरा मौत भी धुंधली सी लगती
आसमां सुथरा सा लगता हर किरन उजली सी लगती
pihoo..❤ आसमां उजला सा लगता हर किरन सुथरी सी लगती...#my #poetry#❤#
😘
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