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Best पकड़े Shayari, Status, Quotes, Stories

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pradeep Kumar alone

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Deepak Kumar Katariya

हाथ उसका पकड़े जिसे सुख में आप ..!! #हाथ #उसका #पकड़े #जिसे #Shorts #my love #iloveyou #mylove #d.K.K #विचार

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Ayush Awasthi

#कलम #poem

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कलम 

मैं हूँ बहुत ही छोटी सी 
पर काम बहुत मैं आती हूँ 
लोगो के मन को भाती हूँ 
हाँ मै कलम कहलाती हूँ 
मैने ही वो ग्रंथ लिखे 
जो लोगो का ज्ञान बढ़ाते है  
मैं ही शब्दो को मोती सा 
लिख जाती हूँ 
हाँ मै कलम कहलाती हूँ 
मैं तब से हूँ जब से कागज 
भी ना तो जन्मा था 
तब मुझको लिखने का काम
 पत्तो पर ही करना था  
कभी मोर पंख से कभी सरकंडों 
से लिखी जाती हूँ 
हाँ मै कलम कहलाती हूँ 
ईश्वर अमिता:(भगवान गणेश) ने 
डोर जब मेरी थामी थी
तब महाभारत जैसा महा ग्रंथ इसकी 
रचना कर डाली थी 
इतिहासों के पन्नो मे अलग रूप था 
अब अलग रूप मे आती हूँ 
हाँ मै कलम कहलाती हूँ 
जब मुझको कोई जज पकड़े तो लोगो
को सजा सुनाती हूँ 
जब मुझको कोई कवि पकड़े तो महाकाव्य
 लिख जाती हूँ 
आफिसर से बच्चो तक सबके मन को भाती हूँ 
हाँ मै कलम कहलाती हूँ 
हाँ मै कलम कहलाती हूँ ...............
                  
                                            आयुष अवस्थी #कलम

dayal singh

bachpan ke din

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जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।

हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और ‍खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और ‍चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।

वो सपने सुहाने ...

छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।

तोतली व भोली भाषा

बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।

जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?

जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।

वो पापा का साइकल पर घुमाना...

हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां?

साइकलिंग

थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।

हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन!
मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!!
राह तक रहा हूँ मैं!!!जब कभी भी हमें अपने बचपन की याद आती है तो कुछ बातों को याद करके हम हर्षित होते हैं, तो कुछ बातों को लेकर अश्रुधारा बहने लगती है। हम यादों के समंदर में डूबकर भावनाओं के अतिरेक में खो जाते हैं। भाव-विभोर व भावुक होने पर कई बार हमारा मन भीग-सा जाता है।

हर किसी को अपना बचपन याद आता है। हम सबने अपने बचपन को जीया है। शायद ही कोई होगा, जिसे अपना बचपन याद न आता हो। बचपन की अपनी मधुर यादों में माता-पिता, भाई-बहन, यार-दोस्त, स्कूल के दिन, आम के पेड़ पर चढ़कर 'चोरी से' आम खाना, खेत से गन्ना उखाड़कर चूसना और ‍खेत मालिक के आने पर 'नौ दो ग्यारह' हो जाना हर किसी को याद है। जिसने 'चोरी से' आम नहीं खाए व गन्ना नहीं चूसा, उसने क्या खाक अपने बचपन को 'जीया' है! चोरी और ‍चिरौरी तथा पकड़े जाने पर साफ झूठ बोलना बचपन की यादों में शुमार है। बचपन से पचपन तक यादों का अनोखा संसार है।


वो सपने सुहाने ...

छुटपन में धूल-गारे में खेलना, मिट्टी मुंह पर लगाना, मिट्टी खाना किसे नहीं याद है? और किसे यह याद नहीं है कि इसके बाद मां की प्यारभरी डांट-फटकार व रुंआसे होने पर मां का प्यारभरा स्पर्श! इन शैतानीभरी बातों से लबरेज है सारा बचपन।


तोतली व भोली भाषा

बच्चों की तोतली व भोली भाषा सबको लुभाती है। बड़े भी इसकी ही अपेक्षा करते हैं। रेलगाड़ी को 'लेलगाली' व गाड़ी को 'दाड़ी' या 'दाली' सुनकर किसका मन चहक नहीं उठता है? बड़े भी बच्चे के सुर में सुर मिलाकर तोतली भाषा में बात करके अपना मन बहलाते हैं।

जो नटखट नहीं किया, वो बचपन क्या जीया?

जिस किसी ने भी अपने बचपन में शरारत या नटखट नहीं की, उसने भी अपने बचपन को क्या खाक जीया होगा, क्योंकि 'बचपन का दूसरा नाम' नटखट ही होता है। शोर व उधम मचाते, चिल्लाते बच्चे सबको लुभाते हैं तथा हम सभी को भी अपने बचपन की सहसा याद हो आती है।

वो पापा का साइकल पर घुमाना...

हम में अधिकतर अपने बचपन में पापा द्वारा साइकल पर घुमाया जाना कभी नहीं भूल सकते। जैसे ही पापा ऑफिस जाने के लिए निकलते हैं, तब हम भी पापा के साथ जाने को मचल उठते हैं, तब पापा भी लाड़ में आकर अपने लाड़ले-लाड़लियों को साइकल पर घुमा देते थे। आज बाइक व कार के जमाने में वो 'साइकल वाली' यादों का झरोखा अब कहां?

साइकलिंग

थोड़े बड़े होने पर बच्चे साइकल सीखने का प्रयास अपने ही हमउम्र के दोस्तों के साथ करते रहे हैं। कैरियर को 2-3 बच्चे पकड़ते थे व सीट पर बैठा सवार (बच्चा) हैंडिल को अच्छे से पकड़े रहने के साथ साइकल सीखने का प्रयास करता था तथा साथ ही साथ वह कहता जाता था कि कैरियर को छोड़ना नहीं, नहीं तो मैं गिर जाऊंगा/जाऊंगी।

लेकिन कैरियर पकड़े रखने वाले साथीगण साइकल की गति थोड़ी ज्यादा होने पर उसे छोड़ देते थे। इस प्रकार किशोरावस्था का लड़का या लड़की थोड़ा गिरते-पड़ते व धूल झाड़कर उठ खड़े होते साइकल चलाना सीख जाते थे। साइकल चलाने से एक्सरसाइज भी होती थी।

हाँ, फिर आना तुम मेरे प्रिय बचपन!
मुझे तुम्हारा इंतजार रहेगा ताउम्र!!
राह तक रहा हूँ मैं!!! bachpan ke din

Ravi Bhadauriya

बचपन और लड़ाई  खड़े थे हम एक दूसरे के कॉलर पकड़े
कुछ यूं होते थे हमारे झगड़े

फिर ऐसे हम दोनों गए पकड़े और मां
ने हम दोनों को पीटा थोड़ा घसीटा

फिर कुछ यूं प्यार से पूछा क्यों करते हो
आपस में झगड़े 
वो कोई और नहीं हम थे दोनों भाई 
जो खड़े थे एक दूसरे की कॉल नहीं पकड़े ..!vaR #_भाई_बचपन_और_झगड़ा

Himanshi Bulbul 2918

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आज इतने साल बाद बारिश के बेहतरीन शाम को देखकर मुझे वह शाम याद आ गई 
वहीं शाम जहां से ये कहानी शुरू हुई थी 
कैसे भूल सकती हूं उन दिनों को 

"वो पहली बारिश थी जिसका मुझे बेसब्री से इंतजार था
 मैं रोज की तरह अपने कमरे में थी और दिन उस दिन इतवार था"

उस दिन बारिश मानो एक बेहद खूबसूरत तोहफा थी मेरे लिए 
 बारिश आई और मैं छाता लेकर छत की ओर भागी

तभी 'बुलबुल संभल कर जाना' कहते हुए मां की आवाज कान से टकराई
 लेकिन मैंने अनसुनी कर दी
 फिर ऊपर रूम में खड़ी खड़ी बारिश का मजा लेते रही

खिड़की से अपना हाथ बाहर निकालकर बारिश की कुछ बूंदों को महसूस कर रही थी 
फिर रूम से मैं छाता लेकर बाहर आई 
सोचा बाहे फैला कर भीग लू 
इस बारिश की एक-एक बूंद को अपने अंदर भर लू 
फिर मम्मी की ढाट याद आई
सोचा बेटा, अगर भीग गई तो घर में घुस नहीं पाएगी 
फिर बस चुपचाप छाता पकड़े खड़ी रही 

मगर पता है बारिश ,
यह बारिश एक ऐसी चीज है जो बैंकर को भी राइटर बना देती है 
और हम पहले से ही कलम हाथ में पकड़े रहते थे 
तो एक हाथ में छाता पकड़कर और दूसरे हाथ से बारिश की बूंदों को छूने में मैं इतनी खोई थी की तभी सामने वाली छत पर मैंने उसे बाहें फैलाए खड़े देखा था
मैंने भी छाका फेंका और खुले मन से बारिश को गले लगाया था 
वह बेखबर था कि उसे कोई देख रहा था 

अचानक ही बारिश कम हुई और उसकी नजरें मुझ पर गई 

मैंने कुछ ना कहा और सीधा नीचे चली गई
कुछ देर बाद छत पर कपड़े सुखाने मैं आई थी तब भी वो हमारी छत की ओर देख रहा था
.
......
..........

"ये प्यार की शुरुआत थी
बरसात में हुई हमारी पहली मुलाकात थी"

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 10 - नाम का मोह 'मुझे कोई आराधना बताइये! कोई भी अनुष्ठान बता दीजिये। मैं कठिन-से-कठिन अनुष्ठान भी कर लूंगा। महेश आज एक संत के पैर पकड़कर बैठ गया था। आस-पास के लोग कहते हैं कि मुनीश्वर महाराज सिद्ध संत हैं। वे जिसे जो बात कह देते हैं, वही हो जाती है। किसी को वे सीधे तो आशीर्वाद देते नहीं, कोई पूजा कोई पाठ, कोई अनुष्ठान बता देते हैं। लेकिन जिसे वे कुछ बता देते हैं, वह ठीक-ठीक उनकी आज्ञा का पालन करे तो उसका काम हो जाता है।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11

।।श्री हरिः।।
10 - नाम का मोह

'मुझे कोई आराधना बताइये! कोई भी अनुष्ठान बता दीजिये। मैं कठिन-से-कठिन अनुष्ठान भी कर लूंगा। महेश आज एक संत के पैर पकड़कर बैठ गया था।

आस-पास के लोग कहते हैं कि मुनीश्वर महाराज सिद्ध संत हैं। वे जिसे जो बात कह देते हैं, वही हो जाती है। किसी को वे सीधे तो आशीर्वाद देते नहीं, कोई पूजा कोई पाठ, कोई अनुष्ठान बता देते हैं। लेकिन जिसे वे कुछ बता देते हैं, वह ठीक-ठीक उनकी आज्ञा का पालन करे तो उसका काम हो जाता है।

M choudhary

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गुजरात में रह रहे 46 अवैध बांग्लादेशी पकड़े गए..
अन्य राज्यों से भी पकड़े जा रहे हैं..

और आपके आस पास
दिखे तो इसकी सूचना 
नजदीकी पुलिस थाने 
में दें..🙏

Dev Sharma

#Nojoto

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हाथों में चिंगारी पकड़े 
बातों में खुद्दारी पकड़े 
पैरों से धरती खुजलाई
 तब तूफां चाल हमारी पकड़े 

मात से बाज नहीं आए पर 
बाज की साज सवारी पकड़े 
बात पे बात शिकार हुए पर 
अबकी बार शिकारी पकड़े 

क्यों आंखें रिस रिस लाल हुई 
रिश्तो की लाज बेचारी पकड़े 
आंख से आंख मिले तब ही
 कोई आंख की फांस हमारी पकड़े 

धर दाम पै दाम निजाम हुए 
जो बंदर आज मदारी पकड़े 
लाला ,अपनी जेब कतर लाए 
फिर रात विराट भिखारी पकड़े #NojotoQuote #nojoto

Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 35 - क्या करेगा? 'कनूँ ! तू खो जाय तो क्या करेगा?' तोक दौड़ा-दौडा आया और कन्हाई का दक्षिण कर पकड़कर पूछ बैठा। आपको यह प्रश्न बहुत अटपटा-असंगत लग सकता है। यह तो ऐसा ही प्रश्न है जैसे कोई पूछे कि 'सूर्य आकाश में खो जाय तो क्या करे?' भला यह व्रजराजकुमार वृन्दावन में खो कैसे सकता है? लेकिन तोक तो गोपकुमारों में सबसे छोटा है। उसके लिए कोई प्रश्न अटपटा नहीं है। कृष्ण के समान ही इन्दीवर सुन्दर, वैसी ही घुंघराली अलकों में मयूर-पिच्छ लगाये, पीताम्बर की कछनी-उत्तरीयधारी वनमाली तोक केवल, आ

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।।श्री हरिः।।
35 - क्या करेगा?

'कनूँ ! तू खो जाय तो क्या करेगा?' तोक दौड़ा-दौडा आया और कन्हाई का दक्षिण कर पकड़कर पूछ बैठा।

आपको यह प्रश्न बहुत अटपटा-असंगत लग सकता है। यह तो ऐसा ही प्रश्न है जैसे कोई पूछे कि 'सूर्य आकाश में खो जाय तो क्या करे?' भला यह व्रजराजकुमार वृन्दावन में खो कैसे सकता है? लेकिन तोक तो गोपकुमारों में सबसे छोटा है। उसके लिए कोई प्रश्न अटपटा नहीं है।

कृष्ण के समान ही इन्दीवर सुन्दर, वैसी ही घुंघराली अलकों में मयूर-पिच्छ लगाये, पीताम्बर की कछनी-उत्तरीयधारी वनमाली तोक केवल, आ
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