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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 14 – ममता 'मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।।'

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
14 – ममता

'मैं अरु मोर तोर तैं माया।
जेहि बस कीन्हे जीव निकाया।।'

Prashant Singh

किसान Pinky Kumari #कविता

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मेरे देश की धरती, सोना उगले

धरती का सीना चीर किसान
पीला सोना उगाता है।
तन का पसीना बहा के किसान
रक्त को पानी बना फसलें उगाता है।
खेतों में खड़े फसलों की बालियां 
हवा में समृद्धि की गाना सुनाती हैं।
खेतों की जमीन जोत जोत
मिट्टी को हलवा सा बनाता है।
नन्हे मुन्ने बीज पौधों को रोप रोप
धरती का श्रृंगार करते हैं।
पत्थर सी बंजर भूमि
बाग बगीचे बनाते है।
मिट्टी में पैसों को डाल
अन्न के रूप में देशभक्ति उगाते हैं।
विपत्तियों के कालचक्र बाढ़ सुखाड़ बनके 
किसान कहां डर के बैठ जाते हैं।
मर जाता है अन्नदाता भी कभी
जब अन्न को भोजन नहीं समझा जाता है।
सर्वजन सुखाय प्रायः किसान राष्ट्रभक्त कहलाता है
जाने कितने कीट पतंग चूहे उसका अन्न खाता है।
बिकती हैं अन्न की बोरियां कूड़े के भाव लगते हैं
सड़क समाज बाजार पर प्रायः किसान बोझ सा लगता है।

नंगे पांव सर पर गामछी
सादा जीवन सुखा आहार।
दुर्दशा में है आज किसान
बन गया है राजनीति का अचार।
अभाव सदा इनके चौखट पलता है
बैंकों की नजर में सदा खटकता रहता है।
मकर संक्रांति लोहड़ी वैशाखी
जब लाए घर खुशहाली।
बसंत पंचमी उगड़ी गुडी पड़वा
समृद्धि की है निशानी।
देख तमाशा दुनिया की फसलों का पर्व सब मनाते हैं
जब धरती से उगले सोना, हो गए तीज त्यौहार पर्व मेला।
हर मौसम की मार सह पीला सोना काटता है
देख तमाशा विधाता की फिर भी किसान भूखा सोता है। किसान Pinky Kumari

Prashant Singh

पीला सोना Madhavi Choudhary #कविता

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धरती का सीना चीर किसान
पीला सोना उगाता है।
तन का पसीना बहा के किसान
रक्त को पानी बना फसलें उगाता है।
खेतों में खड़े फसलों की बालियां 
हवा में समृद्धि की गाना सुनाती हैं।
खेतों की जमीन जोत जोत
मिट्टी को हलवा सा बनाता है।
नन्हे मुन्ने बीज पौधों को रोप रोप
धरती का श्रृंगार करते हैं।
पत्थर सी बंजर भूमि
बाग बगीचे बनाते है।
मिट्टी में पैसों को डाल
अन्न के रूप में देशभक्ति उगाते हैं।
विपत्तियों के कालचक्र बाढ़ सुखाड़ बनके 
किसान कहां डर के बैठ जाते हैं।
मर जाता है अन्नदाता भी कभी
जब अन्न को भोजन नहीं समझा जाता है।
सर्वजन सुखाय प्रायः किसान राष्ट्रभक्त कहलाता है
जाने कितने कीट पतंग चूहे उसका अन्न खाता है।
बिकती हैं अन्न की बोरियां कूड़े के भाव लगते हैं
सड़क समाज बाजार पर प्रायः किसान बोझ सा लगता है।

नंगे पांव सर पर गामछी
सादा जीवन सुखा आहार।
दुर्दशा में है आज किसान
बन गया है राजनीति का अचार।
अभाव सदा इनके चौखट पलता है
बैंकों की नजर में सदा खटकता रहता है। पीला सोना Madhavi Choudhary

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 11 - महत्संग की साधना 'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली। वे अपने विश्राम-कक्ष में एक चन्दन की चौकी पर धवल डाले विराजमान थे। ग्रन्थ-पाठ समाप्त हो गया था और जप भी पूर्ण कर लिया था उन्होंने। ध्यान की चेष्टा व्यर्थ रही और वे पूजा के स्थान से उठ आये। राजकुमार ने स्वर्णाभरण तो बहुत दिन हुए छोड़ रखे हैं। शयनगृह से हस्ति-दन्त के पलंग एवं कोमल आस्तरण भी दूर हो चुके हैं। उनकी भ्रमरकृष्ण घुंघराली अलकें सुगन्धित तेल का सिञ्च

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
11 - महत्संग की साधना

'मेरी साधना विफल हुई।' गुर्जर राजकुमार ने एक लम्बी श्वास ली। वे अपने विश्राम-कक्ष में एक चन्दन की चौकी पर धवल डाले विराजमान थे। ग्रन्थ-पाठ समाप्त हो गया था और जप भी पूर्ण कर लिया था उन्होंने। ध्यान की चेष्टा व्यर्थ रही और वे पूजा के स्थान से उठ आये।

राजकुमार ने स्वर्णाभरण तो बहुत दिन हुए छोड़ रखे हैं। शयनगृह से हस्ति-दन्त के पलंग एवं कोमल आस्तरण भी दूर हो चुके हैं। उनकी भ्रमरकृष्ण घुंघराली अलकें सुगन्धित तेल का सिञ्च

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 7 - निष्ठा की विजय 'मैं महाशिल्पी को बलात्‌ अवरुद्ध करने का साहस नहीं कर सकता।' स्वरों में नम्रता थी और वह दीर्घकाय सुगठित शरीर भव्य पुरुष सैनिक वेश में भी सौजन्य की मूर्ति प्रतीत हो रहा था। वह समभ नहीं पा रहा था कि आज इस कलाकार को कैसे समभावें। 'मेरे अन्वेषक पोतों ने समाचार दिया है कि प्रवाल द्वीपों के समीप दस्यु-नौकाओं के समूह एकत्र हो रहे हैं। ये आरब्य म्लेच्छ दस्यु कितने नृशंस हैं, यह श्रीमान से अविदित नहीं है और महाशिल्पी सौराष्ट्र के

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
7 - निष्ठा की विजय

'मैं महाशिल्पी को बलात्‌ अवरुद्ध करने का साहस नहीं कर सकता।' स्वरों में नम्रता थी और वह दीर्घकाय सुगठित शरीर भव्य पुरुष सैनिक वेश में भी सौजन्य की मूर्ति प्रतीत हो रहा था। वह समभ नहीं पा रहा था कि आज इस कलाकार को कैसे समभावें। 'मेरे अन्वेषक पोतों ने समाचार दिया है कि प्रवाल द्वीपों के समीप दस्यु-नौकाओं के समूह एकत्र हो रहे हैं। ये आरब्य म्लेच्छ दस्यु कितने नृशंस हैं, यह श्रीमान से अविदित नहीं है और महाशिल्पी सौराष्ट्र के


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