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DR. SANJU TRIPATHI

💐नमस्कार ..मैं GulnaaR Tanha Raatein परिवार में आपका हार्दिक स्वागत करती हूँ ..ऊपर दिये गये चित्र को अपने सुंदर शब्दों से सजाये। 💐अपने भाव 2 लाईनों में लिखें .... (2 लाइन्स couplet / मिसरा ऊर्दू शायरी) 💐 Font size छोटा रखें ताकी wall paper खराब न हो ।

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साथी की अगर हर चीज, हर बात सानी होगी।
जिंदगी हो जाएगी बेरंग, अधूरी जिंदगानी होगी। 💐नमस्कार ..मैं GulnaaR
Tanha Raatein परिवार में आपका हार्दिक स्वागत करती हूँ ..ऊपर दिये गये चित्र को अपने सुंदर शब्दों से सजाये।

💐अपने भाव 2 लाईनों में लिखें ....
(2 लाइन्स couplet / मिसरा ऊर्दू शायरी)

💐 Font size छोटा रखें ताकी wall 
paper खराब न हो ।

Ramesh Singh

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कभी मिसरा-ए-ऊला में कभी मिसरा-ए-सानी में।
तुम्हारी  बस  गयी  सूरत  हमारी  ज़िंदगानी  में।।
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हमें  उम्मीद है इक  दिन हमारा  वक़्त बदलेगा।
अभी  इक  मोड़ आयेगा हमारी इस कहानी में।।
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तमाचा  हिज्र  ने  मारा  जगाया नींद से हमको।
कहा लिखना ग़ज़ल ऐसी सुनाना  जो रवानी में।
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हमें इमकान था चादर ओढ़ाकर अब्र की सबको।
उतरता   है  यही से  चाँद शायद रोज पानी में।।
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बनाकर जिस्म को मिट्टी लहू से फिर उसे सींचा।
ग़ज़ल का फिर उगा पौधा दिखा जो बाग़-बानी में।।
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बुलाकर ले गई हमको किसी की याद मीलों तक।
मिला  कोई नहीं हमको मगर उस राजधानी में।।
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हमें क्या इल्म है साहिल मगर इतना तो देखा है।
कई बरगद उखड़ते है मोहब्बत के ही आँधी में।
#रमेश 
मिसरा-ए-ऊला-शेर की पहली पंक्ति।
मिसरा-ए-सानी-शेर की दूसरी पंक्ति।
इम्कान-शक्यता
अब्र-बादल
इल्म-जानकारी

Ramesh Singh

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तमाशा   देखता   है  वो  लगाकर आग पानी में।
हमें  अफ़सोस   है  शायद  मरेंगें हम जवानी में।।
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हमारे  जिस्म  का  मलबा पड़ा है कब्र में लेकिन।
हमारी  रूह  अटकी   है अभी तक रात रानी में।।
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गुज़िश्ता इक महीनें से ग़ज़ल जो कह नहीं पाया।
कहीं वो  नाम  ना  ले ले तेरा मिसरा ए सानी में।।
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तकल्लुफ़ क्यूँ करे कोई तस्सली दे के हमको अब।
हमें  तो  हारना  ही  था लिखी अपनी कहानी में।।
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हमारे  हाल  पर  दुनियां  सही तनकीद करती है।
मिला क्या कुछ नहीं हमको हमारी ज़िंदगानी में।।
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कहीं है वस्ल का क़िस्सा कहीं है हिज्र का मातम।
मगर हर आदमी रहता है इस दुनिया-ए-फ़ानी में।।
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बहुत  था हौसला सच बोलने का बोलते  थे हम।
कटाकर सर चले  आये  कहीं से हक़-बयानी में।।
#रमेश 
गुज़िश्ता-बीता हुआ।
मिसरा-ए-सानी-शेर की दूसरी पंक्ति।
तकल्लुफ़-औपचारिकता।
तनकीद-आलोचना।
दुनिया-ए-फ़ानी-नश्वर संसार

Ramesh Singh

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"बढ़े  मिसरा-ए-ऊला  से  गये मिसरा-ए-सानी तक।
लगी  है  प्यास लेकिन अब चलेगा कौन पानी तक।।
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किसी ने दरअसल हमसे कभी मिन्नत नहीं की थी।
बिना क़िरदार के थे हम गये थे ख़ुद कहानी तक।।
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लिखेंगें  रातभर  कुछ भी  यकीनन जागना  होगा।
बढ़ेंगें  ख़ुद  पड़े  जो  है  ये सारे लफ़्ज़ मानी तक।।
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तलातुम  एक  दरिया  का  सदा  क़ाएम नहीं रहता।
लेकिन ग़फ़लत है तुमको ये लिखेंगें हम जवानी तक।।
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यही  कल  रात भर हमकों नहीं जब नींद आई तब।
उठाकर  शॉल   हाथों   में  गये थे रात  रानी  तक।।
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मुक़द्दर  में  नहीं  था  जो मयस्सर  हो  नहीं सकता।
वो जिसका था गया है बस उसी के ज़िंदगानी तक।।
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जमीं  को  ओढ़कर  साहिल  क़ब्र  में  लेट जाऊँगा।
मगर  मैं  याद  आऊँगा  सभी  को  जावेदानी तक।।"
#रमेश 
मिसरा-ए-उला-शेर की पहली पंक्ति।
मिसरा-ए-सानी-शेर की दूसरी पंक्ति।।
मयस्सर-नसीब
जावेदानी-अनन्तकाल

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