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Anupam Mishra

अँग्रेजी फ्रॉक पर पेंसिल हिल सैंडल डाल,
अपने ओंठो पर लगायी हमने लिपस्टिक लाल,
काला चस्मा आँखों पर चढ़ा चल पड़े मदमस्त चाल,
कॉफी हाउस में आने को उसने किया था हमें कॉल,
जिसकी तरह हम भी बनना चाहते थे स्वीट डॉल;
कॉफी का ऑर्डर दिया बढ़ाने को अपनी शान,
कुछ ही पल में कॉफी मिली करने को उसका पान,
बालों पर अटके चस्में ने चलायी अपनी ऐसी बाण,
फिसला मग हाथ से, किया कॉफी में हमने स्नान,
पेंसिल हिल की अपनी छूटने थे तभी ही प्राण,
पल भर में ही धूल गया अपना सारा झूठा सम्मान,
पर किसी की प्यारी एक बात ने डाल दी नयी जान,
"करना ही क्यूँ भला किसी की तरह बनने का प्रयास
जब खुद पर हो खुद को अटूट प्यार व विश्वास।"
बस फिर क्या था फेंका मग, उताड़ा सर से चस्मा,
खुले पैर फिर से शुरू कर दिया खुले में चलना। #दिखावा #नकल #प्रेम #स्वत्व #हास्य

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 3 – अकुतोभय हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!' वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
3 – अकुतोभय

हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!'

वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 8 - जागे हानि न लाभ कछु राजकुमार श्वेत के आनन्द का पार नहीं है। आज उनका अभीष्ट पूर्ण हुआ। आज उनकी तपस्या सार्थक हुई। उन्हें लगता है कि आज उनका जीवन सफल हो गया। उन्होंने भगवान् पुरारि से वरदान प्राप्त किया है कि पृथ्वी पर वे सहस्त्र वर्ष एकच्छत्र सम्राट रहेंगे और सौ अश्वमेघ निर्विघ्न सम्पन्न कर सकेंगे। भविष्य में इन्द्रासन उनका स्वत्व बनेगा। पिता परम शिवभक्त हैं। श्वेत ने जब गुरुगृह को शिक्षा सम्पन्न करके कुछ काल तपोवन में रहने की अभिलाषा व

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
8 - जागे हानि न लाभ कछु

राजकुमार श्वेत के आनन्द का पार नहीं है। आज उनका अभीष्ट पूर्ण हुआ। आज उनकी तपस्या सार्थक हुई। उन्हें लगता है कि आज उनका जीवन सफल हो गया। उन्होंने भगवान् पुरारि से वरदान प्राप्त किया है कि पृथ्वी पर वे सहस्त्र वर्ष एकच्छत्र सम्राट रहेंगे और सौ अश्वमेघ निर्विघ्न सम्पन्न कर सकेंगे। भविष्य में इन्द्रासन उनका स्वत्व बनेगा।

पिता परम शिवभक्त हैं। श्वेत ने जब गुरुगृह को शिक्षा सम्पन्न करके कुछ काल तपोवन में रहने की अभिलाषा व

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 3 – अकुतोभय हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!' वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
3 – अकुतोभय

हिरण्यरोमा दैत्यपुत्र है, अत: कहना तो उसे दैत्य ही होगा। उसका पर्वताकार देह दैत्यों में भी कम को प्राप्त है। किंतु स्वभाव से उसका वर्णन करना हो तो एक ही शब्द पर्याप्त है उसके वर्णनके लिये - 'भोला!'

वह दैत्य है, अत: दत्यों को जो जन्मजात सिद्धियां प्राप्त होती हैं, उसमें भी हैं। बहुत कम वह उनका उपयोग करता है। केवल तब जब उसे कहीं जाने की इच्छा हो - गगनचर बन जाता है वह। अपना रूप भी वह परिवर्तित कर सकता है, जैसे यह बात उसे स्मरण ही

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 55 - स्वत्व 'अरी छोरियो। कहां जा रही हो सब?' दाऊ ने पूछ लिया। आज वह एक लाल - लाल किसलयों से लदे कदम्ब के नीचे जमकर बैठा है। गोएं आगे-पीछे, इधर-उधर चरने में लगी हैं। कन्हाई लगता है कि सखाओं के साथ कहीं पास ही खेलने में लगा होगा। 'दही बेचने।' रंग - बिरंगे वस्त्रों एवं अलंकारों से सजी छोटी - छोटी दहेड़ियां सिर पर रखे पांच से दस वर्ष तक की बालिकाओं का झुंड - वे सब खड़ी हो गई। बड़े संकोच से किसी एक अलक्ष्य कंठ ने उनमें से उत्तर दिया। 'हमें दही नहीं खिलाओगी?' दाऊ आज मौज में है। #Books

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|| श्री हरि: ||
55 - स्वत्व

'अरी छोरियो। कहां जा रही हो सब?' दाऊ ने पूछ लिया। आज वह एक लाल - लाल किसलयों से लदे कदम्ब के नीचे जमकर बैठा है। गोएं आगे-पीछे, इधर-उधर चरने में लगी हैं। कन्हाई लगता है कि सखाओं के साथ कहीं पास ही खेलने में लगा होगा।

'दही बेचने।' रंग - बिरंगे वस्त्रों एवं अलंकारों से सजी छोटी - छोटी दहेड़ियां सिर पर रखे पांच से दस वर्ष तक की बालिकाओं का झुंड - वे सब खड़ी हो गई। बड़े संकोच से किसी एक अलक्ष्य कंठ ने उनमें से उत्तर दिया।

'हमें दही नहीं खिलाओगी?' दाऊ आज मौज में है।


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