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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 19 - हारे को हरिनाम नदी घड़ियालों से भरी थी, आकाश मच्छरों से, तटीय प्रदेश लम्बी घासों से, जिनमें विषैले सर्पों की गणना नहीं और वन में हाथी, शेर, तेंदुए, चीते। वृक्षों पर भी निरापद शरण लेना सम्भव नहीं था। वहाँ भी सर्प और तेंदुए स्वच्छन्द छलांग ले सकते थे। उसने सोचा भी नहीं था कि बर्मा के इस प्रदेश में उसे रात्रि व्यतीत करनी पड़ेगी। सूर्यास्त के पूर्व ही वे लौट जायेंगे, ऐसा उनका विचार था। लेकिन सूर्य पश्चिम में पहुँच चुके और अब भी पता नहीं

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
19 - हारे को हरिनाम

नदी घड़ियालों से भरी थी, आकाश मच्छरों से, तटीय प्रदेश लम्बी घासों से, जिनमें विषैले सर्पों की गणना नहीं और वन में हाथी, शेर, तेंदुए, चीते। वृक्षों पर भी निरापद शरण लेना सम्भव नहीं था। वहाँ भी सर्प और तेंदुए स्वच्छन्द छलांग ले सकते थे।

उसने सोचा भी नहीं था कि बर्मा के इस प्रदेश में उसे रात्रि व्यतीत करनी पड़ेगी। सूर्यास्त के पूर्व ही वे लौट जायेंगे, ऐसा उनका विचार था। लेकिन सूर्य पश्चिम में पहुँच चुके और अब भी पता नहीं

Mo k sh K an

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शोर मचाए गली गली, चौकीदार चोर है
पंजे वाले पाजी भी तो, वो सब का सिरमौर है

सब सत्ता के भूखे हैं,चोर चोर मौसेरे भाई
छीज़न मारे बुआ भतीजा,चोर मलाई दीदी ताई
अंदर बजे खोखला पिंजर,बाहर चौकस शोर है
शोर मचाए गली गली, चौकीदार चोर है

नाम ओढ़ कर गाँधी जी का,शेर बना सियार है
कम खोखले कौड़ी कौड़ी, बातों का हथियार है
मिश्री तोड़ तोड़ के बाटों, बस इसमें ही जोर है
शोर मचाए गली गली, चौकीदार चोर है

पंजे वाले पाजी भी तो, वो सब का सिरमौर है
शोर मचाए गली गली, चौकीदार चोर है

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 24 - सुलझाता ही है कन्हाई को अपनी मोटी सुनहली बिल्ली बहुत प्रिय है। यह भी श्माम के घर में आते ही 'म्याऊं-म्याऊं' करती कहीं न कहीं से कूद आती है और फिर मोहन के आगे-पीछे घूमती रहेगी। अपना शरीर पूंछ उठाये रगड़ती रहेगी। अत्यन्त सुकुमार रोमावली की यह बिल्ली स्वभाव में भी अपनी पूरी जाति से भिन्न है। कभी किसी गोरसभाण्ड में मूख नहीं डाला इसने और मूख डाले क्यों? इसे दूध-दही, माखन न मिलता हो तो मुख डाले। बालक ही इतना खिलाते हैं कि मैया अथवा दासियों को इसकी ओर ध्यान देने की आवश्यकता कम ही

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|| श्री हरि: ||
24 - सुलझाता ही है

कन्हाई को अपनी मोटी सुनहली बिल्ली बहुत प्रिय है। यह भी श्माम के घर में आते ही 'म्याऊं-म्याऊं' करती कहीं न कहीं से कूद आती है और फिर मोहन के आगे-पीछे घूमती रहेगी। अपना शरीर पूंछ उठाये रगड़ती रहेगी।

अत्यन्त सुकुमार रोमावली की यह बिल्ली स्वभाव में भी अपनी पूरी जाति से भिन्न है। कभी किसी गोरसभाण्ड में मूख नहीं डाला इसने और मूख डाले क्यों? इसे दूध-दही, माखन न मिलता हो तो मुख डाले। बालक ही इतना खिलाते हैं कि मैया अथवा दासियों को इसकी ओर ध्यान देने की आवश्यकता कम ही


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