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Best घने Shayari, Status, Quotes, Stories

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Nikhil Vairaagi

#OpenPoetry इस बारिश की बूंदों में दीदार तुम्हारा 
चाय की गर्म प्याली में चासनी की घोल सा
रूह को सुकून देता है...
तुम्हारे नर्म रुख्सरों से फिसलती
बारिश की ये बूँदें आँखों में इस कदर
चमक जाती हैं जैसे सुर्ख घने बादलों में
सूरज की किरणें इंद्रधनुषीय छटा बिखेरती हैं,
ज़ुल्फ़ों के घने बादलों से 
इन कम्बख़्त हवाओं का गुज़रना मन में एक टीस देता है
कि काश ये ज़ुल्फ़ें मेरे रुख्सरों से एकबार सरकते 
तो इनमें उलझे सीपियों को बंद कर
तेरी यादों की माला पिरोता... #नज़्म

Seema Sharma

💧💧⛱️💧💧⛱️💧💧⛱️💧💧
सावन की बरसी है फिर रिमझिम फुहार 
आई है फिर लौट के देखो बरखा बहार ।
मन भीगा भीगा सा और तन भीग रहा है 
घने मेघ सा भीतर भी उमड रहा है प्यार।
काले काले से घने बादलों  बीच कभी 
चमक जाती है रह रह बिजली सी नार।
भीगी वसुधा ,भीगा आँचल ये नीला
सर से पाँव तलक भींजी अलबेली नार।
नैनों के काजल भी इनमें धुल जाते हैं 
बालों के गजरे से ,....बहती है रसधार!
बरस रहे हैं बादल ,.....कितने नैन यहाँ
विरहन की आँखों से झरते अँसुवन धार!
हरे  हरे  उपवन ,..हाथों  की  चूडी़ हरी
झूम - झूम गाते हैं ,वन भी मेघ मल्हार।
छाई  है  हर  ओर  ये  मस्ती, शीतलता
ये  रूत  भीगी ,..सौंधी सौंधी हुई बयार।
  ,✍️🌨@ - सीमा शर्मा सरोज

Ranjeet Kumar

हमारी चाहत का मजाक तो वो खुद बना रहे हैं,
इन घने अंधेरे में हमारी सिसकियां कौन सुनेगा...!!! #चाहत #घने #अंधेरे #nojoto #nojotohindi #nojotonews

नरेश_के_अल्फाज

वो दिन भी कितने खास थे। जब हम यारो के साथ थे

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वो दिन भी कितने खास थे,
चार दिवारी के भीतर,
खुशियों के साल थे
10 साल तक जो जेल लगा करता
आज पता चल ह यारों,
वो स्कूल जेल कोन्या, जन्नत के दिन थे।
ओर थारे वरगे यार मेरे,
ओर कही न थे।
वो स्कूल के दिन औऱ
मैं अपने साथ कुछ यादों के पल ले आया।
first बैंच से लेकर last बैंच तक के
अनुभव ले आया था।
थारे वरगे जिगरी यारा के साथ,
बिताये कुछ यादगार पल ले आया था।
स्कूल के लास्ट 2 साल घने ही miss करू सु।
2nd bench पर बैठे,मेरे यारा न घना ही याद कर सु
ओर खिड़की तह बाहर का नजारा देखन न तरसू हु।
ओर भाइयों के ग्रुप में ,
एक बार फिर बैठन की सोचू हु।


घने यादगार पल कोनी बनाये
पर जो बनाये ,वो zindagi से कम कोन्या थे।
थारे साथ मे बिताया वो टेम,
इब  नही आना।

ट्यूशन के बहाने ही सही,
एक बह फिर वही ज़िन्दगी जीना चाहवा।
शाम की क्लास का वो 1 घण्टा,
फेर साथ बैठना चाहवा।
फिर एक बह इकट्ठे बैठ,
NSS का खाना खाना चाहवा।
शाम की चाय के एक बह फिर आनंद लेना चाहवा
वो दिन भी कितने खास थे,
जो स्कूल के राज थे।
miss u yaarooo.... वो दिन भी कितने खास थे।
जब हम यारो के साथ थे

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 7 - सब में भगवान 'हम कहाँ जा रहे हैं?' सभी के मन में यही प्रश्न था। सभी के मुख सूख गये थे। वे दुर्दान्त, निसर्गतः क्रूर दस्यु, जिन्होंने कभी किसी की करुण प्रार्थना एवं आर्त चीत्कार पर दया नहीं दिखायी, आज़ इस समय बार-बार पुकार रहे थे - 'या खुदा! या अल्ला!' दस्युपोत था वह। उन्होंने रात्रि के अन्धकार मॅ सौराष्ट्र के एक छोटे ग्राम पर आक्रमण किया। बडी निराशा हुई उन्हें। पता नहीं कैसे उनके आक्रमण का अनुमान ग्रामवासियों ने कर लिया था। पूरा ग्राम

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9

|| श्री हरि: ||
7 - सब में भगवान

'हम कहाँ जा रहे हैं?' सभी के मन में यही प्रश्न था। सभी के मुख सूख गये थे। वे दुर्दान्त, निसर्गतः क्रूर दस्यु, जिन्होंने कभी किसी की करुण प्रार्थना एवं आर्त चीत्कार पर दया नहीं दिखायी, आज़ इस समय बार-बार पुकार रहे थे - 'या खुदा! या अल्ला!'
दस्युपोत था वह। उन्होंने रात्रि के अन्धकार मॅ सौराष्ट्र के एक छोटे ग्राम पर आक्रमण किया। बडी निराशा हुई उन्हें। पता नहीं कैसे उनके आक्रमण का अनुमान ग्रामवासियों ने कर लिया था। पूरा ग्राम

Jangid Damodar

सफलता खोज लूँगा तुम मुझे दुख-दर्द की सारी विकलता सौंप देना, मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा! मैं सफ़र में चल पड़ा हूँ, दूर जाऊँगा समझ लो। व्यर्थ है आवाज़ देना,

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सफलता खोज लूँगा

 तुम मुझे दुख-दर्द की सारी विकलता सौंप देना,
मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा!

मैं सफ़र में चल पड़ा हूँ,
दूर जाऊँगा समझ लो।
व्यर्थ है आवाज़ देना,
आ न पाऊँगा समझ लो।
जोगियों से मन लगाना,
छोड़ दो मुझको बुलाना।
राह में दुश्वारियाँ हो. . . मैं सरलता खोज लूँगा,
मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा!

एक रचनाकार हूँ,
निर्माण करने में लगा हूँ।
मैं व्यथा का सोलहों-
सिंगार करने में लगा हूँ।
यह कठिन है काम लेकिन,
श्रम अथक अविराम लेकिन।
इस थकन में ही सृजन की मैं सबलता खोज लूँगा।
मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा!

फूल की पंखुड़ियों पर,
चैन से तुम सो न पाए।
जग तुम्हारा हो गया पर,
तुम किसी के हो न पाए।
तुम अधर की प्यास दे दो,
या सुलगती आस दे दो।
मैं हृदय की फाँस में अपनी तरलता खोज लूँगा,
मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा!

रात काली है मगर यह,
और गहरी हो न जाए।
फिर तुम्हारी चेतनायें,
शून्य होकर खो न जाए।
इसलिए मैं फिर खड़ा हूँ,
स्याह रातों से लड़ा हूँ।
मैं तिमिर में ही कहीं, सूरज निकलता खोज लूँगा।
मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा! #NojotoQuote सफलता खोज लूँगा

 तुम मुझे दुख-दर्द की सारी विकलता सौंप देना,
मैं घने अवसाद में अपनी सफलता खोज लूँगा!

मैं सफ़र में चल पड़ा हूँ,
दूर जाऊँगा समझ लो।
व्यर्थ है आवाज़ देना,

Rohit Rankawat Rj21

diwali

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दीपावली री शुभ वेला माथे आपने और आपरे रावला रे सगला सदस्यों ने दीपावली री घने मान सु घने कोड सु म्हारे हिवडे री हरक सु बधाई होवे सा

माँ लक्ष्मी री आपरे रावला मे कृपा हमेशा रेवे एडी कामना करू सा

आपरौ 
ROHIT RANKAWAT&FAMILY
NAGAUR RJ-21

:::::RAM RAM SA::::
 diwali

Sooraj Jatthap

मेरा चाँद , मैं और यह सर्द रात 😊 मेरा यह चांद और मैं ,अक्सर बाते करते हम इन सर्द रातो में .... मेरे इस चांद की चाँदनी में भिगोए हुए , और उसकी यादों में डूबे हुए , हम अक्सर यूँ जागा करते है ,यूँ ही सर्द रातो में... कभी हँसी मज़ाक की यह बाते, और कभी ख़ुशनुमा सी वो यादे , तो कभी अश्को की वो बारिशें ,

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मेरा चाँद , मैं और यह सर्द रात 😊
मेरा यह चांद और मैं ,अक्सर बाते करते हम इन सर्द रातो में ....

मेरे इस चांद की चाँदनी में भिगोए हुए , और उसकी यादों में डूबे हुए , हम अक्सर यूँ जागा करते है ,यूँ ही सर्द रातो में...

कभी हँसी मज़ाक की यह बाते,
और कभी ख़ुशनुमा सी वो यादे , 
तो कभी अश्को की वो बारिशें ,

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 7 - सब में भगवान 'हम कहाँ जा रहे हैं?' सभी के मन में यही प्रश्न था। सभी के मुख सूख गये थे। वे दुर्दान्त, निसर्गतः क्रूर दस्यु, जिन्होंने कभी किसी की करुण प्रार्थना एवं आर्त चीत्कार पर दया नहीं दिखायी, आज़ इस समय बार-बार पुकार रहे थे - 'या खुदा! या अल्ला!' दस्युपोत था वह। उन्होंने रात्रि के अन्धकार मॅ सौराष्ट्र के एक छोटे ग्राम पर आक्रमण किया। बडी निराशा हुई उन्हें। पता नहीं कैसे उनके आक्रमण का अनुमान ग्रामवासियों ने कर लिया था। पूरा ग्राम जन शुन्य था। भवनों के द्वार खुले पड़े थे। #Books

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|| श्री हरि: ||
7 - सब में भगवान

'हम कहाँ जा रहे हैं?' सभी के मन में यही प्रश्न था। सभी के मुख सूख गये थे। वे दुर्दान्त, निसर्गतः क्रूर दस्यु, जिन्होंने कभी किसी की करुण प्रार्थना एवं आर्त चीत्कार पर दया नहीं दिखायी, आज़ इस समय बार-बार पुकार रहे थे - 'या खुदा! या अल्ला!'
दस्युपोत था वह। उन्होंने रात्रि के अन्धकार मॅ सौराष्ट्र के एक छोटे ग्राम पर आक्रमण किया। बडी निराशा हुई उन्हें। पता नहीं कैसे उनके आक्रमण का अनुमान ग्रामवासियों ने कर लिया था। पूरा ग्राम जन शुन्य था। भवनों के द्वार खुले पड़े थे।


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