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chandrashekhar mishraji
"वो बारिश का मौसम वो हम दोनों का संग," तेरे ज़ुल्फो से वो बून्द मेरे कंधे से होकर सीधे मेरे दिल मे जाके मेरे नसों में समा गई, मैं तुझको पकड़े तू मुझे पकड़े
Rakesh Kumar Dogra
सूरज बुढ़ापे का जब नींद आए सो जाए। चांद जवानी का जब उंगली पकड़े खो जाए। सुर सरापे सा जब सर-गम पकड़े बह जाए।
The Poet Narendra Nagar
जिन्दगी के ख्वाब अधूरे, अब सब पूरे कर रहें हैं खिल रही थी वो कलियाँ सारी, बस फूल कमल के खिल रहें हैं। हुआ जब जिक्र आंधियों का, आ रहें थे बस हवा के झोकें, भारत के अभिमान की खातिर, दे दिये तुम्हे फिर से मौके, भूल ना जाना देश मेरे अब, यहाँ बेटे जितने अमर रहें हैं, बढ़ रही है उम्मीद मेरी अब, अब सपने रोज़ बुन रहे हैं।। जिन्दगी के ख्वाब अधूरे, अब सब पूरे कर रहें हैं, खिल रही थी वो कलियाँ सारी, बस फूल कमल के खिल रहें हैं। आजाद ही हूँ आजाद रहूँगा, सुन ले ए फरिश्ते चुप न रहूँगा, बोला तो था की आयेगा तो मोदी ही, तुझे लगा मै झूट कहूँगा। जोश है और यूहीं रहेगा, वो सब माथा पकड़े सोच रहें है, कलि बनी किस खेत की मूली, ना जाने किसके जैसे सोच रहें हैं। जिन्दगी के ख्वाब अधूरे, अब सब पूरे कर रहें हैं खिल रही थी वो कलियाँ सारी, बस फूल कमल के खिल रहे हैं। मीडिया के भी आभारी हैं सब, सबको जिस तराजू तोला है, बाबा बोले बेटा बीमारी है सब, बस ये दिल ही हरफनमौला है, झूट तू बोले सच हम पकड़े, अब लोग चर्चा कर रहें हैं, तुम जो समझो वही लगालो, अब हम भी पर्चा भर रहें हैं। कर रहें थे ख्वाब जो पूरे,हम भी अपना लिख रहें हैं, मुरझा गयी अब वो कलियांँ सारी,बस फूल कमल के खिल रहे हैं।। @The Poet Narendra Nagar #bola_tha_aayega_to_modi_hi #Nojotohindi #Nojoto
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read moreAjay Amitabh Suman
ये कविता एक माँ के प्रति श्रद्धांजलि है । इस कविता में एक माँ के आत्मा की यात्रा स्वर्गलोक से ईह्लोक पे गर्भ धारण , बच्ची , तरुणी , युवती , माँ , सास , दादी के रूप में क्रमिक विकास और फिर देहांत और देहोपरांत तक दिखाई गई है। अंत में कवि माँ की महिमा का गुणगान करते हुए इस कविता को समाप्त करता है। माँ आओ एक किस्सा बतलाऊँ,एक माता की कथा सुनाऊँ, कैसे करुणा क्षीरसागर से, ईह लोक में आती है? धरती पे माँ कहलाती है।
ये कविता एक माँ के प्रति श्रद्धांजलि है । इस कविता में एक माँ के आत्मा की यात्रा स्वर्गलोक से ईह्लोक पे गर्भ धारण , बच्ची , तरुणी , युवती , माँ , सास , दादी के रूप में क्रमिक विकास और फिर देहांत और देहोपरांत तक दिखाई गई है। अंत में कवि माँ की महिमा का गुणगान करते हुए इस कविता को समाप्त करता है। माँ आओ एक किस्सा बतलाऊँ,एक माता की कथा सुनाऊँ, कैसे करुणा क्षीरसागर से, ईह लोक में आती है? धरती पे माँ कहलाती है।
read moreSsoumya Yadav
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