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vishwadeepak
Gajaनन्द
ये गांव की पगडंडियों का सफर है साहब हर किसी से तय नहीं किया जाता ©Gajaनन्द मेरा गांव #गांव #पगडंडियों #दिल #रास्ते #तेरे #वास्ते #साहब #Study #कलम #प्यार
vishwadeepak
पगडंडियों पे चलके, चौराहे तक आया हूँ, मंजिल है किस ओर, जाना है कहां?, अभी तक जान न पाया हूँ, मैं हूँ और बस मेरा साया है, बाकियों को काफी पीछे छोड़ आया हूँ, धूप छाँव का डर नहीं मुझे, अंधेरों में भी सीना तान कर आया हूँ, रूठी है दुनिया मुझसे मेरी, न जाने क्यूँ?, इन्हीं कारणों का पता लगाने आया हूँ, हांथ पकड़ कोई रास्ता बता दे, कितना लंबा सफर तय कर आया हूँ, या मैं चलूँ मन से मन की ओर, कहीं खा न जाऊँ धोखा जैसे पहले भी खाया हूँ, फिर लौट न आ मिलूँ कहीं वापस, इतनी मेहनत करके जिसके लिए आया हूँ, आ नहीं रहा समझ में कुछ भी, क्या करूँ मैं बहुत घबराया हूँ, एक दिशा सही मिल जाए, देखेंगे फिर लोग मंजिल कैसे पाया हूँ, पगडंडियों पे चलके, चौराहे तक आया हूँ........ लेखक :- दीपक चौरसिया ©Deepak Chaurasia #my poetry #पगडंडियों पे चलके, चौराहे तक आया हूँ, मंजिल है किस ओर, जाना है कहां?, अभी तक जान न पाया हूँ, मैं हूँ और बस मेरा साया है, बाकियों को काफी पीछे छोड़ आया हूँ,
Poonam
पगडंडियों पे चल रही है जिंदगी कोई ओर है ना छोर है केवल कदम टिके हैं जमीन पर ना दांए थोड़ी जगह है ना बांए थोड़ी जगह है सीधे कदमों को साधे हुए आगे बढ़ते चल रही है जिंदगी ना जाने कहां से मिली है बस मिली है एक जिंदगी ©Poonam # जिंदगी कुछ ऐसी भी.... #पगडंडियों #जिंदगी
Pnkj Dixit
Chandrika Lodhi
पगडंडियों सी पागल थी जिंदगी कभी नाव तो कभी जमीन पर बैठ जाया करती थी बड़ी सुहावनी हुआ करती थी कभी समंदर को पार करने की रवानी ,कभी सूरज तक पहुंचने की दीवानी रुकना उसने सीखा नहीं था चलती ही जाती थी ,लम्हे दर लम्हे में वह अपने अक्स लौटाती थी पगडंडियों से पागल कि जिंदगी.......... उसको हर लम्हा रोमांच लगता था जीवन उसको भोर सा दिखता था पागल चंचल मत मस्त थी वो किरणों के जैसी चलती थी आहट में ही सब को रोशन कर देती होली की आवाज में से रंग बिखेरा करती थी दीपावली के दीपक सी कुछ रोशन हुआ करती थी बारिश के बादलों से रिमझिम रिमझिम बरसा करती थी पगडंडियों से पागल थी जिंदगी...........
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