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SHAILENDRA UPADHYAY
#मुसीबतों से उभरती है #शख्सियत यारो जो #चट्टानों से ना ऊलझे जो झरना किस काम का।। 😎😎😎 मुसीबत क्या है कुछ नहीं
Prakash Bhandari
#मुसीबतों से ही उभरती है #शख्सियत यारों... 😄😄जो #चट्टानों से ही न उलझे वो #झरना किस काम का |😎
सत्यमूर्ति गर्ग
सोचता है वो शख्श जो देखे कभी कुए के छाव में तलमल भरा जल किन्तु बँधा सीराओ में अहसास उसे होता, तब मर्यादाओ पे सभी बंधे है यहाँ सीमा क़ि धाराओं पे।। समंदर के लहरो को भी गुमान बड़ा होता है बहा ले जाउ ये किनारा अभिमान भरा होता है सम्हालने का मौका भी न दू एक पल का ऐसा तूफान अंदर जगा होता है पर टूटते है सरे अरमान चट्टानों के दर्मियां जब लहरे का सामना चट्टानों के दर्मियाँ से होता है।।
Shivam Mishra
प्रेंम की शक्ति प्रेंम अगर पूर्ण हो तो चट्टानों से भी मिल जाती है छाय़ा ये प्रेंम ही था ज़िसकी रक्षा को मेरे गिरधारी ने कन्नी उंगली पे परवत था उठाया ये प्रेंम ही था ज़िसकी रक्षा को अखंड ब्रह्मांड नायक ने अर्जुंन का रथ था चलाया चट्टानों से भी मिल जाती है छाय़ा ये प्रेंम की ही थी शक्ति की अभिमन्यु के हर घाव पे कृष्णा की आँखों मे आँसू आया ये प्रेंम ही था जिसके मान को रखने कन्हैया ने 56 भोग को ठुकरा के केले का छिल्का खाया चट्टानों से भी मिल जाती है छाय़ा ये प्रेंम ही था जिसको बचाने मुरली वाले ने द्रौपदी का चीर बड़ाय़ा ये प्रेंम ही था जिसके सम्मान को बचाने खुद कन्हैया ने प्रतिज्ञा त्याग के रथ का पहिया था घुमाया चट्टानों से भी मिल जाती है छाय़ा देखो प्रेंम का समर्थ ज़िसको समझाने खुद गोपल ने गीता का ज्ञान समझाया ये प्रेंम ही है जिसके कारण तीनो लोको ओर समस्थ ब्रह्मांडों का स्वामी सुदामा के लिये नंगे पांव दौड़ा आया चट्टानों से भी मिल जाती है छाय़ा इस प्रेंम को क्या मैं समझा पाऊंगा मैं नासमझ कि जिस रुप को देखने जन्मों जन्म लगते है योग से,ये प्रेंम ही है जिसमें परमावतार भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुंन के साथ संजय को भी अपना विश्वरुप दिखाया प्रेंम अगर पूर्ण हो चट्टानों से भी मिल जाती है छाय़ा ©शिवम मिश्र विधि विद्यार्थी के के सी ,लखनऊ प्रेंम की शक्ति प्रेंम अगर पूर्ण हो तो चट्टानों से भी मिल जाती है छाय़ा ये प्रेंम ही था ज़िसकी रक्षा को मेरे गिरधारी ने कन्नी उंगली पे परवत था उठाया
Vandna Sood Topa
गहरे समन्दर के अंदर खामोशियाँ उठती हैं गिरती हैं उफान भरी गूंगी सी लहरें शब्दों को तलाशे फिरती हैं धरा की पुकार पर जब जब सलिल मिलन को तड़पता है चट्टानों से टकराकर उसका दर्द सैलाब में बदलता है आहत हो जाते हैं उस पल रेत पर रेत से बने खरौंदे कई कितने सपने बह जाते हैं गहरे समन्दर के अंदर खामोशियाँ उठती हैं गिरती हैं उफान भरी गूंगी सी लहरें शब्दों को तलाशे फिरती हैं धरा की पुकार पर जब जब सलिल मिलन को तड़पता है चट्टानों से टकराकर उसका दर्द सैलाब में बदलता है आहत हो जाते हैं उस पल रेत पर रेत से बने खरौंदे कई कितने सपने बह जाते हैं उन खरौंदो में सोये... अपनों के संग के साथ संजोये वो इक पल ..वो इक सपना.. पानी में भीगता टूटता बह जाता है बस यूँ ही शोर में वापस आने की चाहत में उन खरौंदो में सोये... अपनों के संग के साथ संजोये वो इक पल ..वो इक सपना.. पानी में भीगता टूटता बह जाता है बस यूँ ही शोर में वापस आने की चाहत में #NojotoQuote
Rahul Pattanayak
तुम मुझे कब तक रोकोगे। बिखरे हुए रेत की तरह हूं मैं.., तुम मुझे अपने मुट्ठी मे कब तक दबाए रखोगे, सरकता चला जाऊँगा,हवा के माध्यम से बहता चला जाऊँगा, अपने मंजिल की ओर मैं...। मै वो हवा नही, जो चट्टानों के ड़र से अपना रास्ता मोड़ ले, मै तो वो हवा हूँ ,जो चट्टानों के बीच से अपना रास्ता ढूंढ ले..। एक छोटी सी चिंगारी हूँ मैं, सूरज सा मुझमें ताप नहीं। चारों तरफ अपना प्रकाश बिखेर जाऊंगा एक दिन, जब आ जाऊंगा आग के आगोश में। एक टूटे शीशे की तरह हूँ , बस वक़्त थोड़ा कमजोर है। हीरे की तरह चमक उठूंगा एक दिन, बस मुझको तराशने की दर है। कमजोर मैं नहीं,मेरा वक़्त है, मेरे वक़्त पे वक़्त ही ज़ोर है। वक़्त से सहूलियत मिल जाए अगर कभी, तो मेरे किस्मत पे सिर्फ मेरा ही ज़ोर है। जंग खाया हुए लोहा हूँ मै, ज्वाला की भट्टी में झोंक रहा हूं खुदको। जब वक़्त की मर से पीट जाऊंगा, तब खंजर बनकर उभर जाऊंगा। कलम की स्याही से नहीं, पसीने की स्याही से अपनी तकदीर लिख जाऊंगा। न रहने दूंगा एक भी कागज को कोरा, कुछ ऐसा इतिहास रच जाऊंगा। मै मुसाफिर नहीं हूँ, बस अपने ठिकाने की तलाश हे मुझे, भटक रहा हूं एक बंजारे की तरह, झुलस रहा हूं रेगिस्तान मे, अपनी मंज़िल को इतने करीब देख मिटा रहा हूं अपनी प्यास मै। अपने मंज़िल को पाना जुनून हे मेरा, अपनी कमियाबी को देखना सुकून हे मेरा। तुम मुझे कब तक रोकोगे ऐ- परेशानियां, जिद की चादर ओढ़ ली हे मैंने, आखिरकार तुम मुझे कब तक रोकोगे। #NojotoQuote #google #nojoto
प्रियदर्शन कुमार
मैं हँसता हूँ, जब सबके बीच होता हूँ। मैं रोता हूँ, जब अकेला होता हूँ। सबका साथ है, फिर भी लगता नहीं कोई पास है। मैं वो झरना हूँ जो चट्टानों से चोट खाकर भी,
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