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tanzim Khan

#ऊँट की गर्दन #कामुकता

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12 ।।श्री हरिः।। 12 - भगवान ने क्षमा किया ऊँट चले जा रहे थे उस अन्धड़ के बीच में। ऊपर से सूर्य आग बरसा रहा था। नीचे की रेत में शायद चने भी भुन जायेंगे। अन्धड़ ने कहर बरसा रखी थी। एक-एक आदमी के सिर और कपड़ों पर सेरों रेत जम गयी थी। कहीं पानी का नाम भी नहीं था और न कहीं किसी खजूर का कोई ऊँचा सिर दिखायी पड़ रहा था। जमाल को यह सब कुछ नहीं सूझ रहा था। उसके भीतर इससे भी ज्यादा गर्मी थी। इससे कहीं भयानक अन्धड़ चल रहा था उसके हृदय में। वह उसी में झुलसा जा रहा था।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 12

।।श्री हरिः।।
12 - भगवान ने क्षमा किया

ऊँट चले जा रहे थे उस अन्धड़ के बीच में। ऊपर से सूर्य आग बरसा रहा था। नीचे की रेत में शायद चने भी भुन जायेंगे। अन्धड़ ने कहर बरसा रखी थी। एक-एक आदमी के सिर और कपड़ों पर सेरों रेत जम गयी थी। कहीं पानी का नाम भी नहीं था और न कहीं किसी खजूर का कोई ऊँचा सिर दिखायी पड़ रहा था। जमाल को यह सब कुछ नहीं सूझ रहा था। उसके भीतर इससे भी ज्यादा गर्मी थी। इससे कहीं भयानक अन्धड़ चल रहा था उसके हृदय में। वह उसी में झुलसा जा रहा था।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9 || श्री हरि: || 12 - अर्थार्थी 'बेशर्म कहीं का' सरदार की आखें गुस्से से लाल हो गयी। फड़कते ओठों से उन्होंने डांटा। 'पासमें तो महज एक बूढा ऊँट है ओर हिम्मत इतनी।' 'कसूर माफ हो।' अरब अपमान सह नहीं सकता। अगर उसे रोशन का खयाल न होता तो तेग बाहर चमकती होती। लेकिन वह समझ नहीं सका था कि उसने गलती क्या की है। आखीर वह काना-कुबड़ा नही है। बदशकल भी नहीं है ओर कमजोर भी नही है। अरब न तो रोजगार करता और न खेती। किसी नखलिस्तान की चढ़ाई में वह भी दुशमन से आधे दर्जन ऊँट

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 9

|| श्री हरि: ||
12 - अर्थार्थी

'बेशर्म कहीं का' सरदार की आखें गुस्से से लाल हो गयी। फड़कते ओठों से उन्होंने डांटा। 'पासमें तो महज एक बूढा ऊँट है ओर हिम्मत इतनी।' 

'कसूर माफ हो।' अरब अपमान सह नहीं सकता। अगर उसे रोशन का खयाल न होता तो तेग बाहर चमकती होती। लेकिन वह समझ नहीं सका था कि उसने गलती क्या की है। आखीर वह काना-कुबड़ा नही है। बदशकल भी नहीं है ओर कमजोर भी नही है। अरब न तो रोजगार करता और न खेती। किसी नखलिस्तान की चढ़ाई में वह भी दुशमन से आधे दर्जन ऊँट

kunwar KhuShwant🇮🇳

#horror कुछ लोग कहते है कि वो होते है । कुछ लोग कहते है कि वो नहीं होते है। कुछ भी हो लेकिन वे अपना एहसास दिलाना कभी नहीं भूलते । यह बात है मेरे जीवन की एक सच्ची घटना की । मेरे भैया की शादी थी इसलिए घर पे काम के चक्कर में हम 3 दोस्त रात को पास के क़स्बे में कुछ सामान लेने जाना था । बात यह थी की वो क़स्बा कवास (बाड़मेर) जहाँ 2006 को बाढ़ से कॉफी लोग मरे थे उस रास्ते से जाना था। रात का समय था और इस समय लोग उस रास्ते से नहीं गुजरते है कहते है ये रॉड मनुहस है और यहाँ पे पेरानॉर्मल एक्टिविटी होती है। शा

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#Horror
कुछ लोग कहते है कि वो होते है । कुछ लोग कहते है कि वो नहीं होते है। कुछ भी हो लेकिन वे अपना एहसास दिलाना कभी नहीं भूलते । यह बात है मेरे जीवन की एक सच्ची घटना की । मेरे भैया की शादी थी इसलिए घर पे काम के चक्कर में हम 3 दोस्त रात को पास के क़स्बे में कुछ सामान लेने जाना था । बात यह थी की वो क़स्बा कवास (बाड़मेर)  जहाँ 2006 को बाढ़ से कॉफी लोग मरे थे उस रास्ते से जाना था। रात का समय था और इस समय लोग उस रास्ते से नहीं गुजरते है कहते है ये रॉड मनुहस है और यहाँ पे पेरानॉर्मल एक्टिविटी होती है। शा

Manjari Shukla

पुछल्लू और मटुरिया की होली मटुरिया चुहिया गुस्से से, अपने बिल के एक कोने से दूसरे कोने में पैर पटकते हुए घूम रही थी और बड़बड़ा रही थी-"मेरा तो काम करते - करते भुर्ता बना जा रहा हैI" पुछल्लू चूहा बेचारा दुम दबाए बैठा हुआ थाI मटुरिया अपनी महीन आवाज़ में फ़िर पिनपिनाई-"सुबह से तीन बार दाल बाटी गर्म कर चुकी हूँI चुपचाप खाते क्यों नहीं?" #Books

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 पुछल्लू और मटुरिया की होली

मटुरिया चुहिया गुस्से से, अपने बिल के एक कोने से दूसरे कोने में पैर पटकते हुए घूम रही थी और बड़बड़ा रही थी-"मेरा तो काम करते - करते भुर्ता बना जा रहा हैI"

पुछल्लू चूहा बेचारा दुम दबाए बैठा हुआ थाI

मटुरिया अपनी महीन आवाज़ में फ़िर पिनपिनाई-"सुबह से तीन बार दाल बाटी गर्म कर चुकी हूँI चुपचाप खाते क्यों नहीं?"

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 12 - अर्थार्थी 'बेशर्म कहीं का' सरदार की आखें गुस्से से लाल हो गयी। फड़कते ओठों से उन्होंने डांटा। 'पासमें तो महज एक बूढा ऊँट है ओर हिम्मत इतनी।' 'कसूर माफ हो।' अरब अपमान सह नहीं सकता। अगर उसे रोशन का खयाल न होता तो तेग बाहर चमकती होती। लेकिन वह समझ नहीं सका था कि उसने गलती क्या की है। आखीर वह काना-कुबड़ा नही है। बदशकल भी नहीं है ओर कमजोर भी नही है। अरब न तो रोजगार करता और न खेती। किसी नखलिस्तान की चढ़ाई में वह भी दुशमन से आधे दर्जन ऊँट और बडा-सा तम्बू छीन सकता है। सरदार के ऊँट #Books

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|| श्री हरि: ||
12 - अर्थार्थी

'बेशर्म कहीं का' सरदार की आखें गुस्से से लाल हो गयी। फड़कते ओठों से उन्होंने डांटा। 'पासमें तो महज एक बूढा ऊँट है ओर हिम्मत इतनी।' 

'कसूर माफ हो।' अरब अपमान सह नहीं सकता। अगर उसे रोशन का खयाल न होता तो तेग बाहर चमकती होती। लेकिन वह समझ नहीं सका था कि उसने गलती क्या की है। आखीर वह काना-कुबड़ा नही है। बदशकल भी नहीं है ओर कमजोर भी नही है। अरब न तो रोजगार करता और न खेती। किसी नखलिस्तान की चढ़ाई में वह भी दुशमन से आधे दर्जन ऊँट और बडा-सा तम्बू छीन सकता है। सरदार के ऊँट


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