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-Kumar Kishan Krishan Kr. Gautam
❤️हृदय के मरुस्थल मे ये कैसा बीज बोया है कुछ तो उमड़ रहा, इस जलती तपती रेत में कुछ तो कल्प रहा, भवरें इसपे आ रहे पुष्प कोई तो खिल रहा हृदय के मरुस्थल में ये कैसा बीज बोया है। माली बन रहे हो तो तोड़ बेच आना मत, तेज़ चलती धूप में मुझको मुरझाना मत, तोड़ना गर कभी तो तोड़ निज रख लेना, लेकर गर जाना तो छोड़ के न आना मत, हृदय के मरुस्थल में ये कैसा बीज बोया है। #कुमार किशन #बीज
Dhanpaal Sikarwar
वो जो बोया जाता है वो ही तो उगता है, क्या बोया जा रहा है क्या उग रहा है दुनिया में। धनपाल सिकरवार
my BEST
One who truly loves. will "सोचकर जिंदगी में कुछ हसिन, सायद कुछ बोया था उसने। मग़र! खोकर उसे ख़ुद-से, ख़ुद-को ही खोया है उसने।" अपनो को खोना! खुद-को खोना! कुछ सुरु होने से पहले ही खत्म होना! ये सारे वही एहसास हैं, जिसमे बस रोने की आस है। "सोचकर जिंदगी में कुछ हसिन, सायद कुछ बोया था उसने। मग़र! खोकर उसे ख़ुद-से, ख़ुद-को खोया है उसने।" #left #broken #truelove #loose #beyourself
अंकित दुबे
Kashmir जिसने अलगाववाद का बीज है बोया उनको सबक सिखाएंगे जन्नत में जिसने जहर है बोया सब अब मुँह की खाएंगे जो सही था नक्शा भारत माँ का उसको हमने बनाया है काश्मीर पर कलंक था उसको धोकर आज दिखाया है जो बलिदान मुख़र्जी का था व्यर्थ नहीं अब जाएगा अब काश्मीर के लाल चौक पर तीनो रंग लहराएगा ~ अंकित दुबे #kashmir #370 #35a
रजनीश "स्वच्छंद"
जो बोया वही तो काट रहा।। क्या खोया क्या पाया मैंने, जो बोया वही तो काट रहा। क्या था संचित जीवन मे मेरे, जो बैठ आज मैं बांट रहा। निजसुख के एक लालच में, रिश्तों की होली जलाई थी। अर्थ-मुग्ध इस दुनिया मे, अपनी ही बोली लगाई थी। कहाँ ख़बर और कब ये पता था, क्या बोली लगी, किस भाव बिका। बस हाथों हाथ रहा बदलता, किस बाजार गिरा, किस ठाँव टिका। रिश्तों के पुराने ज़ख्म वही, हूँ बैठ आज मैं चाट रहा। क्या खोया क्या पाया मैंने, जो बोया वही तो काट रहा। पतझड़ का मौसम कब बदला, कब इन बागों में बहार रही। हाथों में बस मेहंदी रचती रही, दुल्हन-डोली बिना कहार रही। कुसुम कली ने लिया जन्म कब, गर्भ से ही चीत्कार रही। कुछ पल्लव ऐसे भी होते, अर्ज़ी जिनकी अस्वीकार रही। दोनों ध्रुवों की ये खाई चौड़ी, पकड़ कलम मैं पाट रहा। क्या खोया क्या पाया मैंने, जो बोया वही तो काट रहा। दर्द का भी दो पत्थर ले, मैं घीस उनको आग लगाऊंगा। पकड़ सभी के सूक्ष्म नशों को, दे टीस उनको आज जगाऊंगा। हकदार रहे वो भी पापों के, जो तान के चादर सोये हैं। दोष रहेगा उनका भी, निज को, जो मान के कातर रोये हैं। कुछ तो धृत अब निकलेगा, जो मैं छाली को घांट रहा। क्या खोया क्या पाया मैंने, जो बोया वही तो काट रहा। ©रजनीश "स्वछंद" जो बोया वही तो काट रहा।। क्या खोया क्या पाया मैंने, जो बोया वही तो काट रहा। क्या था संचित जीवन मे मेरे, जो बैठ आज मैं बांट रहा। निजसुख के एक लालच में,
Prakash Shukla
जिन्दगी एक रंग मंच है क्या खोया क्या पाया कर्मभूमि है तय करती कि क्या बोया क्या जाया है विषम परिस्थिति विकट रूप मे घर समाज के आगे कोई जलती धूप थपेड़े खाए कोई एयर कन्डीशन मे जागे सब कर्मों का एक ही फल है मिट्टी मे मिल जाना पृथ्वी ,जल ,नभ ,अनल ,समीर सब पुष्प रूप खिल जाना आधुनिकता मे खोए हुए सब घोर तिमिर है छाया दुःख को सुख और सुख को दुःख समझे है यही प्रभु की माया जिन्दगी एक रंग मंच है क्या खोया क्या पाया कर्मभूमि है तय करती कि क्या बोया क्या जाया प्रकाश प्रकाश
LalitPurohit
आज का ज्ञान दिन कटते रहे पता लगता रहा आज एक बीज बोया खेत मे गेंहू का कुश समय बाद उसपे 80 दाने आये है । उसी तरह जगत के खेत मे एक पाप का बीज बोया होगा तो 80 तखलीफे जैसी दी है वैसी आने वाली है @एक कवि #NojotoQuote #कवि #ज्ञान #सुनलो #हकीकत
अनुराग चन्द्र मिश्रा
लम्हा लम्हा जीते हैं जी लेनें दो ये वक्त गुज़र रहा है, गुज़ार लेने दो न समझते हो हमें, तो रहने दो कोशिश भी ना करो समझने की ना समझाओ हमें बस ख़ामोश रहने दो लम्हा लम्हा जीते हैं जी लेने दो क्या कुछ दफनाया है हमनें, क्या बोया है जो दफनाया है उसे दफन हो तो जाने दो जो बोया है कोंपले उग तो आने दो मत करो गुड़ाई यहां, ज़मीं समतल हो जाने दो लम्हा लम्हा जीते हैं जी लेने दो बहुत वक्त लगता है 'करीने' से लगाने में कुछ चीजें टूटी है, कुछ अभी तक संभली है ना बिखराओ इन्हें बस समेट जानें दो मदद करनी है तो बस इतनी सी करो कुछ यादें कुछ ज़ख्म बस नज़र ना आने दो वक्त को भी थोड़ी मरहम लगा जाने दो लम्हा लम्हा जीते हैं ज़िन्दगी जी लेनें दो ये वक्त गुज़र रहा है, गुज़ार लेने दो| लम्हा लम्हा जीते हैं जी लेनें दो ये वक्त गुज़र रहा है, गुज़ार लेने दो न समझते हो हमें, तो रहने दो कोशिश भी ना करो समझने की ना समझाओ हमें बस ख़ामोश रहने दो लम्हा लम्हा जीते हैं जी लेने दो क्या कुछ दफनाया है हमनें, क्या बोया है जो दफनाया है उसे दफन हो तो जाने दो
रजनीश "स्वच्छंद"
किंचित, मनुज तुम हो नहीं।। मैं रहा घूरता बरगद को, स्वप्न या अतिरेक था। विचलित हृदय की भावना, मैं ही मूर्ख एक था। तनों से निकलती डालियां, धरा पे फिसलती डालियां, नवसृजित संचार का पर्याय, बिनजल सिसकतीं डालियां। रश्मि किरण मूक झांकते, तपती तली, सुख ताकते। शुष्क सी बंजर धरा पर, अवशेष निज का टालते। एक साख से निर्मित हुआ, विस्तृत न वो किंचित हुआ। स्वाहा स्वप्न अश्रुधार में, तक्त स्वतेज सीमित हुआ। था भ्रम जो पाला कभी, निज स्वार्थ को टाला सभी। निष्प्राण में हो प्राण वास, थी मन मे ये ज्वाला लगी। कालिखों में निज का श्वेत खोया, मानो बंजर धरा पर था रेत बोया। अंकुरित बीज भी निस्तेज सा है, पालक हताश, हर खेत रोया। है मनुज का भी किस्सा यही, जो बोया मिलेगा हिस्सा वही। स्वयं को स्वयं से ही मारता, है स्वार्थ का होना कितना सही। धरा तृप्त जो कर गया, बादल वही तो नेक था। विचलित हृदय की भावना, मैं ही मूर्ख एक था। ©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote किंचित, मनुज तुम हो नहीं।। मैं रहा घूरता बरगद को, स्वप्न या अतिरेक था। विचलित हृदय की भावना, मैं ही मूर्ख एक था। तनों से निकलती डालियां, धरा पे फिसलती डालियां, नवसृजित संचार का पर्याय,
Jaswant Kumar DJ
सब अपनी-अपनी दुनिया में खोया था ।। दिल मेरा हारा था फिर भी मै ने बीज बोया था ।। रिश्ता यहॉ कौन निभाता है । बात-बात में सब इतराता है।। जो बीज मै ने बोया था इंसान रूपी कौआ ने उसे दुर कही फेंका था।। #nojoto #nojotohindi #nojotoenglish #nojotolove #nojotoshayri #nojotopoetry #nojotoisq #ilovenojoto #TSH #Mjjaswant #ilovemj