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VIKRAM KUMAR

#टच #लव

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RK Sharma

सुना है, महफ़िल में तुम्हारी चर्चा है
 
कया फर्क पड़ता हैं कि खिलाफ है

जब मतलब ठहरा अपने आप से है

©Ghanshyam Dayma #तकदीर #टच #जंजीर #थका #दगा #यकीन 

#ujala

M♥️PkBabu

#salute

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#Salute *उँगलियाँ ही*
*निभा रही हैं*
*रिश्ते आजकल..*

*ज़ुबाँ से*
*निभाने का*
*वक्त कहॉ  है ...*

*सब टच में बिजी है..*

*पर टच में कोई नही है !*
सुप्रभात❤️ #salute

ntnrathore

मोबाइल

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अकड़ते थे जो कभी, जरा जरा सी बात पर,
गरदन झुकाये घूमते हैं।
सर उठा के मिलते थे कभी,
मिरे शहर के लोग।
अब मोबाइल में आँखे गड़ाए दिखते हैं।

ओये, अबे , भिया सुन के नज़रे घुमाते थे,
अब महज नोटिफिकेशन की आहट सुनते हैं
अब बस मोबाइल में आंखे गड़ाए दिखते हैं।

अखबारों, किताबो, लायब्ररी वाचनालयों में ,
सुबह शाम टकरा जाते थे कभी।

अनंत सी दुनिया का इल्म,अब हथेली में ढूंढते हैं।
अब मोबाइल में आंख गढ़ाए दिखते हैं।

शिकायत करें क्या, शिकवा करें किससे,
अपनी भी फितरत कहाँ रही पहले जैसी
डायरी में दर्ज करते थे,सारे अहसास कभी
अब नोटपैड के टच में डूबे रहते  हैं।

लफ़्ज़ों में तो कोई फर्क नही होता मगर,
पन्ने में जो मिलता था लम्स,
वो टच में ढूंढते हैं।
अजीब हो चुके हैं हम,
कभी हाथ की लकीरों में,
तो कभी हथेली में, दुनिया ढूंढते हैं।

......बस मोबाइल में आँखे गड़ाए दिखते हैं।

नवाब"सैम" मोबाइल

chetan 805827351😊

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“हाथ मे टच फोन सिर्फ स्टेटस के लिए अच्छा है, सब के टच में रहो ज़िन्दगी के लिए ज्यादा अच्छा है।”

Rooh

#OpenPoetry # feelingsबाल शोषण #poem

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#OpenPoetry                                                              बाल शोषण
_________________________________________________________________________
बाल शोषण एक अपराध है ऐसा जो कोमल बच्चे की और ममता जगाएगा,
कोई कैसे करें निर्दयता का व्यवहार उनसे यह सोच कर कैसे ना गुस्सा आएगा।
इंसानियत को भी इस तथ्य पर स्वयं शर्म आ जाएगी, जब भी रियान स्कूल की घटना चर्चा में लाई जाएगी।
वह मासूम भी मदद के लिए चिल्लाया होगा, 
जब जालिमों ने मारते समय को इतना तड़पाया होगा।
वह मां अवश्य सदमे में आई होगी 
जब किसी ने उसकी मौत की खबर उसे सुनाई होगी जब शिक्षा‌ स्थल पर हो ऐसी घिनौनी हरकतें,
 फिर कैसे उम्मीद करें कहीं और ना ऐसी हरकतें।
हरियाणा के बाल ग्रह से बच्चियों के शोषण का मामला सामने आया है, 
हाल ही में छत्तीसगढ़ में भी यही कहर बच्चों पर ढाया है।
कोई किसी का नहीं रहा ये कलयुग का दौर है ,
संत महापुरुष कोई नहीं यहां हर एक ही दिल में चोर है।
केंद्र और राज्य  सरकार है इस लापरवाही का कारण, जो देश के बच्चे हो रहे असुरक्षित अकारण।
बच्चों को यह जरूर सिखाएं ना का मतलब ना है कोई शरीर को छूने ना पाए ,
यदि कोई निर्दयता का व्यवहार दिखाए डरे नहीं मदद के लिए जरूर चिल्लाएं।
बच्चों को ऐसे विषय पढ़ाएं ,
उनसे संबंधित समस्या से उनकी भाषा में अवगत कराएं।
अब तो बाल शोषण के खिलाफ कुछ कर दिखाएं, बच्चों को खेल-खेल में गुड टच और बैड टच में फर्क  बताएं।
बाल शोषण के खिलाफ सरकार ने एक नियम बनाया, 376 और 354 की धारा का क्यों किसी को पता चलने ना पाया।
इस तथ्य पर और क्या कहूं मन मेरा भर आया है,
 बस इस कविता के माध्यम से हर सोए व्यक्ति को जगाना चाहा है✍️ #OpenPoetry #  feelings#बाल शोषण

HøT_Bõy_Øm

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*ये मोबाइल यूँ ही हट्टा कट्टा नहीं बना* 
                       *बहुत कुछ खाया - पीया है इसने*
   *मसलन*
    *ये हाथ की घड़ी खा गया*  
      *ये टॉर्च - लाईटे खा गया*  
      *ये चिट्ठी पत्रियाँ खा गया*  
       *ये    किताब    खा  गया*
        *ये    रेडियो    खा  गया*
       *ये टेप रिकॉर्डर  खा गया*
         *ये कैमरा     खा    गया*
         *ये कैल्क्युलेटर खा गया*
     *ये पड़ोस की दोस्ती खा गया*  
        *ये मेल-मिलाप खा गया* 
        *ये हमारा वक्त खा गया*  
      *ये हमारा सुकून खा गया*  
             *ये पैसे खा गया*
            *ये रिश्ते खा गया*
           *ये यादास्त खा गया*
          *ये तंदुरूस्ती खा गया*.              
        *कमबख्त* 
*इतना कुछ खाकर ही स्मार्ट बना*
*बदलती दुनिया का ऐसा असर*        
                 *होने लगा*
*आदमी पागल और फोन स्मार्ट* 
                *होने लगा* 
*जब तक फोन वायर से बंधा था*
        *इंसान आजाद था*
 *जब से फोन आजाद हुआ है*
   *इंसान फोन से बंध गया है*
  *ऊँगलिया ही निभा रही रिश्ते* 
               *आजकल*
*जुवान से निभाने का वक्त कहाँ है*
        *सब टच में बिजी है*
      *पर टच में कोई नहीं है   ।*
😂😃😂😃😂😃😂😃😂

पंडित जी बनारस वाले

मान लो मेरे बात को यार ..

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हाथ मे टच फोन सिर्फ स्टेटस के लिए अच्छा है,😏

 सब के टच में रहो ज़िन्दगी के लिए ज्यादा अच्छा है।”😇💞💓 मान लो मेरे बात को यार ..

Samar Shem

kabir singh movie meri najro m बहुत बहस हो चुकी है कबीर सिंह पर। मुझे बहस नहीं करनी है। साबित करने वालों ने उसे बुरा भी साबित कर दिया और बहुत अच्छा भी। मुझे बात करनी है लड़कों की। फिल्म देखकर निकले हुए मुश्किल से 2 घंटे हुए थे। भिवाड़ी से घर जाने के लिए ई रिक्शा का इंतजार था। ई रिक्शा आया उसमें आमने सामने लड़का-लड़की बैठे थे। मैं ई रिक्शा में बैठने लगा। झट से लड़का उठा और लड़की की तरफ बैठ गया। मैं भी उधर ही बैठ रहा था, क्योंकि ड्राइवर के जस्ट पीछे वाली सीट के मुकाबले सबसे पीछे वाली सीट आरामदा #samar_shem

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kabir sinhg movie 
meri najaro m

बहुत बहस हो चुकी है कबीर सिंह पर। मुझे बहस नहीं करनी है। साबित करने वालों ने उसे बुरा भी साबित कर दिया और बहुत अच्छा भी। मुझे बात करनी है लड़कों की। 
फिल्म देखकर निकले हुए मुश्किल से 2 घंटे हुए थे। भिवाड़ी से  घर  जाने के लिए ई रिक्शा का इंतजार था। ई रिक्शा आया उसमें आमने सामने लड़का-लड़की बैठे थे। मैं ई रिक्शा में बैठने लगा। झट से लड़का उठा और लड़की की तरफ बैठ गया। मैं भी उधर ही बैठ रहा था, क्योंकि ड्राइवर के जस्ट पीछे वाली सीट के मुकाबले सबसे पीछे वाली सीट आरामदायक होती है। लड़का लड़की को सिक्योर करते हुए मुझसे बोला कि उधर बैठ जाओ। 

ये लड़का कबीर सिंह नहीं था, क्योंकि कबीर तो गुस्से पर कंट्रोल नहीं कर सकता था। हां अगर मैंने उस लड़की को छू भी दिया होता तो यकीनन वो कबीर सिंह बन जाता। अगर इस बात पर यकीन ना हो तो किसी लड़के के सामने छूकर देख लेना। जबरन रंग लगाने पर कबीर सिंह ने भी वही किया जो गुस्से में एक इंसान कर पाता है। 

मैंने लड़कों को देखा है, अपनी प्रेमिकाओं की फिक्र करते हुए। भीड़ से बचाते हुए  मेट्रो में, लिफ्ट में। बस में। उसे अपने आगे ऐसे खड़ा करते हैं ताकि कोई और उसको टच ना कर पाए। पता है क्यों खड़े होते हैं। क्योंकि वो लड़का है। उसे पता है लड़के लड़की को देखकर क्या सोचते हैं। उसे पता है लड़के कहां टच करना चाहते हैं। उसे पता है लड़की के साथ वो क्या चाहते हैं। कबीर सिंह भी जानता है ये बात। तभी तो दुपट्टा संभालने को कह देता है, ताकि कोई उसकी छाती का नाप दूर से ही ना ले सके। अब ये सवाल मत करना कि लड़की ही क्यों छाती छिपाए। लड़के क्यों नहीं। ये सवाल ऐसे लगते हैं ज़मीन ही नीचे क्यों रहे आसमां क्यों नहीं। औरत वो ज़मीन है, जिसने हर भार अपने ऊपर उठाया है, मर्द का भी। उससे ताकतवर कोई नहीं। बस उस ताकत को ही पहचानना है। 

कबीर सिंह औरत की ताकत को जानता है। तभी तो वो उस दर्द को जानता है, जिसपर कोई समाज खुलकर बात भी नहीं करता। पीरियड्स का दर्द। वो बताता है कैसे प्रेमिका को गोद में बैठाकर पुचकारना है। ये दर्द मेरे आसपास के लड़के नहीं जानते। उन्हें प्यार के नाम पर सिर्फ सेक्स करना आता है। लड़की का बैग कंधे से उतारना नहीं आता। कबीर आंसू पोंछता है, बैग संभालता है। ये प्यार है। मैंने तो ये देखा है कि मर्द लड़की का बैग पकड़ना शर्म का काम समझते हैं। कबीर लड़की को सिखाता है कि वो अपने परिवार से अपनी चॉइस की बात करे। वो अपने परिवार को प्यार और ज़िंदगी का फलसफा समझाता है। तभी तो कहता है कि पैदा होना, प्यार करना और मर जाना। 10 पर्सेंट ज़िंदगी यही है, बाकी तो 90 पर्सेंट रिएक्शन है।

दुनिया रिएक्शन है। कबीर प्रेमी है। वो प्रेमी जो दूरी बर्दाश्त नहीं कर पा रहा। इसलिए कबीर नशा ले रहा है। नहीं तो प्यार में कोई मर जाता है। कोई भाग जाता है। कोई भूखा रहकर मर जाना चाहता है। कोई लड़की को नुकसान पहुंचाता है। ये सुकून वाला था इतने गुस्से वाला कबीर जानता है कि प्यार क्या होता है। तभी तो वो लड़की के घर वालों को प्यार के मायने समझा रहा है। वो लड़की को चोट नहीं पहुंचाता। वो उसके घर वालों को नहीं पीटता। बल्कि लड़की के भाई के गाल को चूमकर किस के मायने समझा देता है। कबीर प्यार में है तभी तो कहता है कि ये उसकी बंदी है। बिल्कुल वैसा ही लगा जैसे कह रहा हो, खबरदार अगर मेरी बहन की तरफ आंख उठाकर देखी तो..। ये मेरी मां है। ये मेरी दादी है। ये मेरे पापा हैं। ये मेरा भाई है...। हां ये मेरी बंदी है कहना इसलिए अजीब लगता है कि अभी लड़की ये नहीं कहना सीख पाई है कि ये मेरा बंदा है। जैसे एक औरत दूसरी औरत से लड़ जाती है कि ये मेरा पति है। दूर रहना। डोरेे डाले तो आंखें नोच लूंगी। 

प्यार पैमाना साथ लेकर नहीं किया जा सकता कि पहले माप लें कि कहीं अधिकारों का तो उल्लंघन नहीं हो रहा है। चाकू उठाकर कपड़े उतरवाने वाला कबीर देखते हैं तो हमें रेप की कोशिश लगती है। मैंने लड़कों से सुना है कैसे उन्होंने लड़की की सलवार का नाड़ा तोड़ दिया। वो पकड़ती और रोकती रह गई। लेकिन उसके बाद लड़की विरोध नहीं करती। बस ये कहती रही, अभी जाओ कोई देख लेगा। फिर कभी करेंगे ये। लेकिन फिर भी दोनों छिप छिपकर करने वाले प्यार का सुख भोग लेते हैं। शायद राइटर ने भी लड़कों से ये बातें सुनी होंगी। तभी उसने जबरन वाला सीन लिख दिया। सिनेमा में समाज का सच दिखाने की हिम्मत होनी चाहिए, ताकि सही गलत की बहस शुरू हो सके। और वो इस सीन पर हुई भी। ये फिल्म की कामयाबी है। 

शादी का झांसा देकर रेप करने की खबरों से अखबार भरे रहते हैं। अगर कबीर जबरन रेप करने वाला होता तो हीरोइन के साथ में उस वक़्त सेक्स करने से रुक नहीं जाता, जब हीरोइन कहती है- आई लव यू कबीर। ये सुनकर क्यों रुका कबीर। वो तो चाकू की नोंक पर कपड़े उतरवा रहा था। फिर उसे क्यों लगा कि ये हीरोइन के साथ धोखा होगा। जो कह रहे हैं कि कबीर सिंह देखकर समाज पर बुरा असर पड़ेगा तो मैं तो चाहता हूं वो कम से कम कबीर ही बन जाएं। जो लड़की को पहले ही बता दें कि उसे फिजिकल सपोर्ट चाहिए। और ये सपोर्ट लेने के लिए लड़की की हां का इंतजार करे। जब लड़की उसे आई लव यू बोले तो सेक्स तभी करें जब वो भी उससे प्यार करते हो। नहीं तो कबीर की तरह ये सोचकर रुक जाएं कि उसके साथ धोखा है। अगर ऐसा हो तो शादी का झांसा देकर रेप की खबरों से अखबार नहीं भरेंगे। मुझे कबीर में वो कई लड़के नज़र आए, जो लड़की को देखकर सिर्फ अपने ज़हन में उसके साथ सेक्स करने की हसरत पालते हैं। जो किसी लड़की को अपनी बपौती समझते हैं। जो तथाकथित प्रेमी सनकी हो जाते हैं। इन्हीं वजहों से हमें कबीर का फेमिनिज्म, कबीर का प्रेम, कबीर का ज़िंदगी जीने का नज़रिया नज़र नहीं आता। इसलिए हम कबीर को अपने पैमाने से मापकर आदर्श देखना चाहते थे, कबीर ने हमारे ज़हन के दरीचे खोले। लोगों ने उसपर बहस की, इस फिल्म से और क्या चाहिए समाज को। ये ही तो दर्पण है। 
हां बस कोई लड़की प्रीति ना बने, जो हर मौके पर चुप रह जाए। लड़का टच करे तो पलटकर जवाब न दे। परिवार वाले अपनी मर्ज़ी थोपें तो ये ने बता सके कि उसका फैसला क्या है। लड़के ज़बरदस्ती करें तो पुलिस स्टेशन तक ना जा सके!

samar shem। kabir singh movie 
meri najro m

बहुत बहस हो चुकी है कबीर सिंह पर। मुझे बहस नहीं करनी है। साबित करने वालों ने उसे बुरा भी साबित कर दिया और बहुत अच्छा भी। मुझे बात करनी है लड़कों की। 
फिल्म देखकर निकले हुए मुश्किल से 2 घंटे हुए थे। भिवाड़ी से घर  जाने के लिए ई रिक्शा का इंतजार था। ई रिक्शा आया उसमें आमने सामने लड़का-लड़की बैठे थे। मैं ई रिक्शा में बैठने लगा। झट से लड़का उठा और लड़की की तरफ बैठ गया। मैं भी उधर ही बैठ रहा था, क्योंकि ड्राइवर के जस्ट पीछे वाली सीट के मुकाबले सबसे पीछे वाली सीट आरामदा

Aditya Goswami

हाथ में टच फ़ोन, बस स्टेटस के लिये अच्छा है, सबके टच में रहो, जींदगी के लिये ज्यादा अच्छा है.
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