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रिंकी✍️
" मोह " एक बूंद बारिश कि चेहरे पर पड़ी । चेहरे से टपक हथेलियों पर गिरी। मैं देख कर थोड़ी मुस्कुराई। वो अपनी शैतानियों पर खिलखिला रही। सूरज से बचने के लिये मुट्ठी में चली । उसके ताप से देखो कैसे है डर रही। छुप छुप कर बड़े विश्वास से मुझे ताक रही। घबराई हुई वो हाथों की रेखाओ में छुपी। लेकिन वो तो बूंद थी , बूंद बन चली। मुट्ठी से छूट कर हवा में घुली । वो तो क्षणिक थी , क्षण में चली। उससे कैसी ये मोह मुझे है लगी। जाने से उसके ह्रदय में पीड़ा हो रही ✍️रिंकी ऊर्फ चंद्रविद्या #मोह #बूंद #संभालरखो #यकदीदी #यकबाबा #क्षणिक
Nagvendra Sharma( Raghu)
गुलाब नही दे सकता तुमको, वो क्षणिक प्रेम कि निशानी है, कुछ क्षण महक के बदल जाये, वो प्रेम नही नादान जवानी है ।। #गुलाब नही दे सकता तुमको, वो #क्षणिक प्रेम कि #निशानी है, कुछ क्षण महक के बदल जाये, वो #प्रेम नही नादान जवानी है ।। #nagvendrasharma #pyar #massage #❣️
Sachin Ratnaparkhe
हुआ जब उससे मिलन तो जीवन सदा के लिए सरल हो गया, जैसे कोई हिम क्षणिक तपन से सदा के लिए तरल हो गया। इन दो पंक्तियों में मेंने #शुद्ध_हिंदी का प्रयोग का करने का प्रयास किया है जिसमें सभी शब्द पूर्णतः हिंदी के है। #मिलन #सरल #हिम = बर्फ़ #क्षणिक #तपन #तरल #yqhindiwriters
Bhavesh Thakur
क्षणिक सुख... ©Bhavesh Thakur "Rudra" क्षणिक सुख रक्त की हर बूँद को धुप में जलाकर मेहनत किया क्षणिक सुख के लिये, समय नही दे पाया किसी को दब गया हूँ मै एक बोझ तले।
कृष्णभक्ती...
जिद्द ही आत्महिताचीच असावी , कारण क्षणिक आनंद मिळवण्याची जिद्द ही तर लहान बाळकाला सुद्धा असते पण ती जिद्द फक्त क्षणिक आनंदच देऊ शकते , आणि आत्महित असणाऱ्या मनुष्याची जिद्द मात्र त्याला नक्कीच आत्मकल्याणापर्यंत नेते...
Bambhu Kumar (बम्भू)
6. क्षणिक आवेश जिसमें हर युवा तैमूर था हाँ, मगर होनी को तो कुछ और ही मंजूर था रात जो आया न अब तूफ़ान वह पुर ज़ोर था भोर होते ही वहाँ का दृश्य बिलकुल और था सिर पे टोपी बेंत की लाठी संभाले हाथ में एक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ में घेरकर बस्ती कहा हलके के थानेदार ने - "जिसका मंगल नाम हो वह व्यक्ति आए सामने" निकला मंगल झोपड़ी का पल्ला थोड़ा खोलकर एक सिपाही ने तभी लाठी चलाई दौड़ कर गिर पड़ा मंगल तो माथा बूट से टकरा गया सुन पड़ा फिर "माल वो चोरी का तूने क्या किया"... #क्षणिक #आवेश जिसमें हर #युवा तैमूर था हाँ, मगर होनी को तो कुछ और ही #मंजूर था #रात जो आया न अब #तूफ़ान वह पुर ज़ोर था भोर होते ही वहाँ का #दृश्य बिलकुल और था #सिर पे टोपी बेंत की #लाठी संभाले हाथ में एक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ में
Prakash Shukla
हूँ स्वप्न मै पर क्षणिक मात्र हूँ अंतर्मन की व्याकुलता इस शोर शराबे कौतूहल मे उठे जोर की विह्वलता हूँ क्षणिक मात्र पर स्वप्न तेरे कर पाए यदि साकार मुझे हूँ अमूर्त रूप पर बहुतेरे दे पाए यदि आकार मुझे हाँ शशर्त मै कह सकता हूँ जीवन्त तेरा ही दिन होगा यदि रूप मुझे तू दे न सका बेहाल तू मेरे बिन होगा #प्रकाश #प्रकाश
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