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Sunil Kumar Maurya Bekhud

a-person-standing-on-a-beach-at-sunset स्तंभ
बोझ उठाता भवन का
होकर अडिग स्तंभ
फिर भी मन में तनिक भी
रहता कभी न दंभ

उसके हिलने डुलने से
आ जाता है संकट
लोग भवन खाली करके
दूर भागते झटपट

इसीलिए सब चाहते
हो स्तंभ मजबूत
हिले नहीं ,भूकंप के
जाएं पसीने छूट

जमें रहें अपनी जगह
जनु अंगद के पाँव
इनकी ही अनुकंपा से
सिर पर छत की छाँव

कहता हमसे जब तक ना
मैं जर्जर  हो जाऊँ
तब तक हो बेफिक्र रहो
है यह भवन टिकाउँ

हम सबको शिक्षा देते
कभी न खाना धैर्य
जिस मुकाम पर हों बेखुद
वहीं दिखाएँ शौर्य

©Sunil Kumar Maurya Bekhud #स्तंभ

Divyanshu Pathak

"कौनसा स्कूल" --02 🌷😊☕☕🌷☕🙏😊🌷 : यह उनका प्रथम स्थूल रूप में अवतरण होता है। यही प्राणियों का अन्न होता है। अन्न जठराग्नि में आहूत होता है। शरीर के सप्तधातुओं का निर्माण करते हुए शुक्र में समाहित हो जाता है। पांचवें स्तर पर माता के गर्भ में शरीर धारण करता है। अर्थात् माता-पिता भी बादल-बिजली की तरह एक पड़ाव ही होते हैं, जीव को आगे प्रकट करने का-स्थूल शरीर देकर। जीव को पैदा नहीं करते। जीव की अपनी यात्रा है, अपने कर्मों के अनुसार। उन्हीं फलों को भोगने के लिए समाज के बीच में विभिन्न सम्बन्ध स्थापित करन

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हमारे हाथ में है भी क्या!
हम तो प्रकृति के हाथों कठपुतली हैं।
सूर्य ही सृष्टि का प्रथम षोडशी पुरुष है,
जगत का पिता है।
अमृत और मृत्यु लोक दोनों को प्रभावित करता है।
प्रकृति मां है।
सृष्टि के सम्पूर्ण प्राणी सूर्य से उत्पन्न होते हैं।
सूर्य किरणों द्वारा नीचे उतरते हैं। बादल बनते हैं।
वर्षा के जल के साथ पृथ्वी की
अग्नि में आहूत होते हैं।
औषधि-वनस्पतियों का रूप लेते हैं। "कौनसा स्कूल" --02
🌷😊☕☕🌷☕🙏😊🌷
:
यह उनका प्रथम स्थूल रूप में अवतरण होता है। यही प्राणियों का अन्न होता है। अन्न जठराग्नि में आहूत होता है। शरीर के सप्तधातुओं का निर्माण करते हुए शुक्र में समाहित हो जाता है। पांचवें स्तर पर माता के गर्भ में शरीर धारण करता है। अर्थात् माता-पिता भी बादल-बिजली की तरह एक पड़ाव ही होते हैं, जीव को आगे प्रकट करने का-स्थूल शरीर देकर। जीव को पैदा नहीं करते। जीव की अपनी यात्रा है, अपने कर्मों के अनुसार। उन्हीं फलों को भोगने के लिए समाज के बीच में विभिन्न सम्बन्ध स्थापित करन

Divyanshu Pathak

Ramroop ji मैं मंदिर मन को ही मानता हूं इसलिए निर्माण के लिए उठापटक करते ठेकेदारों से कोई वास्ता नही और न ही दलित शोषितों से कोई कुंठा ।मैंने तो सर्वाधिक उसी वर्ग को मंदिरों की चौखट नापते देखा है । बालाजी,कैलादेवी, खाटू जी ,या वृंदावन, कहीं पर भी कोई रोक नही हां गांव में वो लोग अपनी मर्जी से ही यह कुंठा पाल बैठे है कि कोई उनको पूजा नहीं करने देगा तो यह भृम है क्योंकि इसके लिए "शबरी भाव" अपनाना होगा तब सामान्य वर्ग ब्राह्मण तो क्या भगवान भी भेद नही कर पाएंगे ।🤓😁😁😁🌹🙏🙏💕☕😀खैर मंदिर के लिए मेरे भाव

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मंदिर ---03
कर्ता भाव के यथार्थ को
जान पाना ही मूल भाव है।
तभी आस्था के साथ अन्य
शक्ति को स्वीकार किया जा सकता है
जो स्वयं से अघिक शक्तिमान हो।
समय के साथ उसी श्रद्धा के कारण
आत्म साक्षात्कार होता है।
कर्ता स्पष्ट होता है।
कर्ता की प्रतिष्ठा के कारण
मन मन्दिर हो जाता है।
व्यक्ति को अपनी जीव रूप
यात्रा का आभास होने लग जाता है
कौनसा शरीर छोड़ा होगा
कैसे माता के गर्भ से गुजरता हुआ
इस देह में जी रहा है।
पहले कितनी माताओं की
देहों में से गुजर चुका होगा। Ramroop  ji मैं मंदिर मन को ही मानता हूं इसलिए निर्माण के लिए उठापटक करते ठेकेदारों से कोई वास्ता नही और न ही दलित शोषितों से कोई कुंठा ।मैंने तो सर्वाधिक उसी वर्ग को मंदिरों की चौखट नापते देखा है ।
बालाजी,कैलादेवी, खाटू जी ,या वृंदावन, कहीं पर भी कोई रोक नही हां गांव में वो लोग अपनी मर्जी से ही यह कुंठा पाल बैठे है कि कोई उनको पूजा नहीं करने देगा तो यह भृम है क्योंकि इसके लिए "शबरी भाव" अपनाना होगा तब सामान्य वर्ग ब्राह्मण तो क्या भगवान भी भेद नही कर पाएंगे ।🤓😁😁😁🌹🙏🙏💕☕😀खैर मंदिर के लिए मेरे भाव

Dev Koli

Payal Singh Sona Dr.Imran Hassan Barbhuiya

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मिडिया को देश का चौथा स्तंभ माना जाता है
लेकिन यह स्तंभ अब खोखला हो चुका है
इसलिए किसी भी हद तक गिर जाता है Payal Singh Sona Dr.Imran Hassan Barbhuiya

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