मेरी जिंदगी भी क्या अजीब है न चाहकर भी तेरे कितना करीब है ढूंढ़ता रहा बन बेगाना जमाने में तुम ऐसी ही मिल गई ये मेरा नशीब है।। ©रसिक उमेश दिल से#चाहत#