आंखों से एक बूंद छलका नहीं कि फोन बजने लग जाता, भर्राई आवाज को संभालते हुए, मां पुछ लेती है, "क्या हुआ बेटा.. ठीक तो हो?"
और, सब ठीक कभी नहीं होता, पर लगने लग जाता है।
"हां, मां बढ़िया हूं।"
पिता भी इसी तरह व्याकुल होते हैं, पर उन्होंने कभी टेलीफोन तो छोड़िए शब्दों में कहने वाला प्रेम भी ना कभी समझा... ना किया।
अपनी सोच कुछ भी हो उनकी, पर समाज ने तो प्रेम और प्रेम जैसी भावनाओं को कमजोरी का नाम दे रखा है। उसमें सींचे गये। फिर, पिता कमजोर नहीं हो सकते।
शायद इसीलिए नहीं कहते। #PARENTS#a_journey_of_thoughts#unboundeddesires#shreekibaat_AJOT