तल्ख से तल्ख तर हो गई केसी शाम ओ सहर हो गईं। इब्ने आदम की मजबूरियां देख कर चश्मे तर हो गई। हर तरफ धूप ही धूप है छावं क्यों मुख़्तसर हो गई। मेने छुप कर किए सब गुनाह कैसे उसको खबर हो गई। इतना रूठा है परवर दिगार हर दुआ बे असर हो गई। हाय "गुलरेज़"आंसू तेरे बेबसी मुश्तहर हो गई। "गुलरेज़ फहीम" ©Fahim Khan Bakshi गुलरेज़ फहीम #Morning jeevesh yadav