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जिव्या की वाणी ( मित्र/शत्रु) वैसे तो दुनिया

 जिव्या की वाणी ( मित्र/शत्रु)
     वैसे तो दुनिया को जीतना उतना ही मुश्किल है ,  
  जितना कि अपने ही शरीर की,  
  जिव्या के रस को रोकने के बराबर है।
  ये रस ही जिन्दगी के हार -जीत की,
  पहचान करा रहा है हर पल हमें।
दुनिया में आपका सच्चा प्यार ही आपकी,
जिव्या ही है उसको पास होने पर जुदा,
 होना अहसास हो रहा है आपको।
 हे परमत्तव अंश।
 वाणी ही अमृत‌ ,वाणी ही विष है इस जहां में।
 वाणी ही मित्र ,वाणी ही अपना शत्रु है इस जहां में।
 इसका उद्गम का स्थान है जो, 
 उसकी ही आपको पहचान नहीं है,
 फिर भी कहते हो,
 हे मेरे दोस्त आप भी मेरे साथ नहीं हो।
धन्यवाद
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