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अंबर में मेघों ने डाला घुमड़ घुमड़ कर डेरा

  अंबर में मेघों ने डाला
   घुमड़ घुमड़ कर डेरा
    सूरज की किरणों को रोका
     छाया घना अंधेरा
           ठुमक ठुमक कर इठलाती सी
            गिरती जल की बूंदे
             हुई गर्जना बिजली कड़की
             डर से आंखें मूंदे
    चली हवाएं बर्फीली सी
     कांप उठा तन मेरा
             चिड़ियां छुपी घोंसला उनका
             दुर्लभ प्राण बचाए
              मिला न जिस प्राणी को आश्रय
                कट कट दंत बजाए
     कोई प्रमुदित  है बेखुद 
     तो  किसी को दुख ने घेरा

©Sunil Kumar Maurya Bekhud
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