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तपती दुपहरी चिलचिलाती धूप, सिर्फ बिच्छू,बबूल की झा

तपती दुपहरी चिलचिलाती धूप, सिर्फ बिच्छू,बबूल की झाड़ी है,
दूर-दूर तक  निर्जन बियाबान, यहाँ सिर्फ  ऊँट ही  एक सवारी है।

हर तरफ  सिर्फ रेत  के टीले, बस आँधियों  का ही  बोलबाला है,
पानी का नामोनिशान नहीं, मवेशियों का ना  चारा ना निवाला है।

ना शीत बसंत, ना पतझड़  सावन, ना कोई  भीगता, ठिठुरता है,
रेत  पर ऊँटों के  पद चिन्ह  मिलते, ऊपर  आसमान  सुलगता है।

कैक्टस, बबूल की  बहुतायत यहाँ, ऊँटों के  घंटियाँ  टुनटुनाते हैं,
पानी के  आभास में  यहाँ, प्राय:  मृग मरीचिका  ही देखे जाते हैं। प्रतियोगिता. 3 
विषय _ दिए गए बैकग्राउंड को आधार बनाकर एक रचना लिखिए 8 पंक्तियों में 

🌈 कोलैब करने के पश्चात कमेंट में Done लिखें ।

 🌈समयावधि_
 1 नवंबर रात 12:00 बजे तक
तपती दुपहरी चिलचिलाती धूप, सिर्फ बिच्छू,बबूल की झाड़ी है,
दूर-दूर तक  निर्जन बियाबान, यहाँ सिर्फ  ऊँट ही  एक सवारी है।

हर तरफ  सिर्फ रेत  के टीले, बस आँधियों  का ही  बोलबाला है,
पानी का नामोनिशान नहीं, मवेशियों का ना  चारा ना निवाला है।

ना शीत बसंत, ना पतझड़  सावन, ना कोई  भीगता, ठिठुरता है,
रेत  पर ऊँटों के  पद चिन्ह  मिलते, ऊपर  आसमान  सुलगता है।

कैक्टस, बबूल की  बहुतायत यहाँ, ऊँटों के  घंटियाँ  टुनटुनाते हैं,
पानी के  आभास में  यहाँ, प्राय:  मृग मरीचिका  ही देखे जाते हैं। प्रतियोगिता. 3 
विषय _ दिए गए बैकग्राउंड को आधार बनाकर एक रचना लिखिए 8 पंक्तियों में 

🌈 कोलैब करने के पश्चात कमेंट में Done लिखें ।

 🌈समयावधि_
 1 नवंबर रात 12:00 बजे तक