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अकेलेपन में मजा है कितना, तुमकों आज बताता हूँ तन्ह

अकेलेपन में मजा है कितना, तुमकों आज बताता हूँ
तन्हाई में जीवन जीने की, एक कहानी तुम्हें सुनाता हूँ

उठता है वो सुबह सबेरे, बस काम की चिंता लेकर
नहा धो तैयार वो होता, काम को जाता चाय पीकर

दिन भर की आपा धापी में, भूलता दोपहर का भोजन
न जाने वो क्या पाना चाहे,स्थिर नही होता उसका मन

शाम जब भूख है लगती, बाजार से कुछ खा लेता है
खाने के समय ही थोड़ा,कुछ ग़ैरों का संग पा लेता है

काम कभी खत्म न होता, पर दिन खत्म हो जाता है
दिन भर की दौड़ भाग से, कुछ न हाशिल हो पाता है

थका हारा रात को वह जब,कमरे पर अपने आता है
एकांत कमरे में वो खुद को,बस तन्हाई में ही पाता है

सोचता है मन फिर उसका,है क्या कोई मेरा अपना
है कहीं क्या आंखे कोई, जो देखती हो मेरा सपना

दिन भर की थकान से टूटा,हो बेसुध फिर सो जाता है
उसे सच्चाई से सपना प्यारा,जिसमें फिर खो जाता है

कोई मिल जाये अपना, सपना रोज देखा करता है
इसी तरह से रोज रोज वो, जीने की किश्तें भरता है

अकेलापन जब चरम पर हो, तन्हाई अच्छी लगती है
कभी कभी तो पूरी रातें बस टक टकी में ही कटती है

©SHASHIKANT
  #Shashikant_Verma