उड़ानें नई पंछियां भर रहे हैं हवा का बिना समझे रुख़ लड़ रहे हैं । पता कुछ नहीं है फ़क़त जोश है बस बुझी बातियों में अगन भर रहे हैं। नये पर भरेंगे ही परवाज़ ऊंची नया है अभी जोश दम भर रहे हैं। हकीकत किसी को पता ही नहीं है मगर बात अपनी सभी कह रहे हैं। गए भूल बातें पुरानी अभी सब नई बात पर राय सब रख रहे हैं। नहीं झूठ सच वह समझ पा रहे हैं मगर भेड़ की चाल सब चल रहे हैं। तमाशा शुरू कर मदारी छुपा है गुलाटी जमूरे नये भर रहे हैं। समझ पा रहे हैं नहीं चाल उनकी इशारों पे जिनकी सभी चल रहे हैं। मिली चोट हाकिम से पहले भी लेकिन शिकायत मगर आज सब कर रहे हैं। मिलेगा दग़ा फिर उन्हीं रहबरों से बग़ावत वो जिनके लिए कर रहे हैं। सभी नासमझ हैं 'पिनाकी' कहे क्या ग़लत रास्तों पर सभी चल रहे हैं। रिपुदमन झा 'पिनाकी' धनबाद (झारखण्ड) स्वरचित एवं मौलिक ©Ripudaman Jha Pinaki #बग़ावत