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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

जाने  क्यूँ  मेरे  साथ  हुआ  है  हर  एक  बार।
लोगों की साजिशों का होता आया हूँ शिकार।
ख़ामोशी  से  करता रहा  हूँ  मैं तो अपने काम-
फिर क्यों मुझी  पे  पड़ते हैं  उलाहनों  के वार।

मुझ पर ही सबकी उंगलियांँ हैं उठने को तैयार।
नाकाम - ए - फेहरिस्त  में  होता  हूँ  मैं  शुमार।
करते  हैं सभी  गलतियांँ  होती  है  सबसे  भूल-
लेकिन  अकेले  मुझको  ही  ठहराया  गुनहगार।

पहले की तरह अब नहीं रहा मेरा किरदार।
होने  लगा  है  अब  मेरा  वजूद  तार - तार।
मैं  सोचता  हूँ  देख  कर  ये  सबकी बेरुखी-
इस बार कर ही डालूँ  मैं इस पार या उस पार।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #जाने_क्यों
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

मैं  इधर हूँ  या  उधर  हूँ  क्या  पता।
मैं हक़ीक़त में  किधर  हूँ क्या  पता।
तय नहीं  कर  पा  रहा अपनी जगह-
राह-ए-मंज़िल या सफ़र हूँ क्या पता।

मैं  समंदर या  नहर  हूँ  क्या पता।
शांत जल हूँ या लहर हूँ क्या पता।
कशमकश में हूँ  ज़रा अपने लिए-
कारगर  या बेअसर  हूँ क्या  पता।

शाम  हूँ  या  मैं  सहर  हूँ  क्या  पता।
पात  हूँ  या  मैं  शजर  हूँ  क्या पता।
मेरे  संग  जो  हो  रहा  उससे  अभी-
बेख़बर  या  बाख़बर  हूँ  क्या  पता।

शून्य हूँ या मैं शिखर हूँ क्या पता।
कामयाबी  की  डगर हूँ क्या पता।
एक दिलकश खुशनुमा आग़ाज़ हूँ-
या  बुरा  कोई  हशर हूँ क्या पता।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #क्या_पता
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

इज़हार नज़र का तीर तू मेरे जिगर के पार कर दे।
करम मुझपे भी मेरी जाँ ज़रा एक बार कर दे।
बरस जा प्यार बनके मुझपे मैं प्यासा बहुत हूँ-
बरसों से चमन ग़मगीन है गुलज़ार कर दे।

भले इकरार कर या तू मुझे इंकार कर दे।
मेरी रुसवाई तू जानां सरेबाज़ार कर दे।
आशिक पर इनायत इक दफ़ा तो कर दे अपने-
बरसों से चमन ग़मगीन है गुलज़ार कर दे।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #गलज़ार_कर_दे
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

ज़िंदगी फिर से उलझने लगी है
बात सारी फिर बिगड़ने लगी है
हलचलों का दौर थमता ही नहीं
वक्त की रफ्तार फिर थमने लगी है
अपने अब अपने से लगते ही नहीं।
दिल में सबके दूरियां पलने लगी है।
बात अच्छी ही नहीं लगती कोई
बातें सबकी सबको ही चुभने लगी है।
अपनी है दुनिया, है अपनी ज़िंदगी
रिश्तों की कीमत बदलने लगी है।
अपना होकर भी नहीं अपना कोई
बस जरूरत के लिए ढलने लगी है।
खो गए रिश्ते मिटा सब अपनापन
रिश्ते ख़ुदग़र्ज़ियों पर चलने लगी है।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #ज़िन्दगी
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White ज़िन्दगी  पूछती  है  ज़िन्दगी  जियोगे  कब।
स्वाद इस ज़िन्दगी की मौज का चखोगे कब।
ऊम्र अपनी बिता रहे हो फंँस के उलझन में -
आसमाँ  पर  उड़ानें सपनों की  भरोगे  कब।

आप खुद  से बताओ  यार अब  मिलोगे कब।
क़ैद कर रखा है खुद को जो तुम खुलोगे कब।
पालते हो  क्यूँ  दिल में  ग़म  उदास  रहते  हो-
रंग  जीवन में अपने खुशियों की  भरोगे  कब।

जी रहे हो घुटन में खुल के साँस लोगे कब।
दुःख के दुश्मन को हौसलों से मात दोगे कब।
कुछ  नहीं  मिलता  है औरों  के लिए जीने से-
हो चुके  सब  के  बहुत अपने बता  होगे कब।

रिपुदमन झा 'पिनाकी' 
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #कब
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White थम गया ज़िन्दगी का एक सिलसिला शायद।
कर लिया खुद का ग़लत एक फैसला शायद।
मिल नहीं पा रही मंजिल तलाश थी जिसकी-
चुन लिया हमने  ही  ग़लत एक रास्ता शायद।

वक्त करने लगा अभी है कुछ दग़ा शायद।
या कि होने लगा है कम ये हौसला शायद।
मात खाने लगा हूँ मैं तो हर एक बाज़ी में-
दाँव पड़ने लगा है सब अभी उल्टा शायद।

जो कमाया था नाम हो रहा फ़ना शायद।
हो गया था मैं आप ही से बदगुमा शायद।
मिट रहा है वजूद धीरे-धीरे अब तो मेरा-
लोग कहते है जोश अब नहीं रहा शायद।

रिपुदमन झा 'पिनाकी '
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #शायद
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White हम भी चमकेंगे आसमांँ में सितारों की तरह,
अपनी उल्फत के भी किस्से जहाँ सुनाएगा।

रिपुदमन झा "पिनाकी"
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #चमकेंगे
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White धीरज मत खो, रख हिम्मत, तू कदम बढ़ा मंज़िल की ओर।
कब तक रात रहेगी काली, आएगी फिर उजली भोर।।
देर भले हो सुख आने में, लेकिन एक दिन आएगी।
फूल खिलेंगे खुशहाली के, हर सूरत मुस्काएगी।
बेरंगी जीवन में सबके, रंग भरेंगे सतरंगी।
अपने भी जो साथ नहीं वो, चलेंगे कल बनके संगी।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #हिम्मत_रख
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

New Year 2025 गया पुराना वर्ष लिए नव हर्ष आज नववर्ष आया।
कुसुमित पुलकित हर मानव है, हर हृदय आज है हर्षाया।।

फिर आया है आशाओं की नव किरण लिए नववर्ष आज।
जन जीवन सुख आरोग्य भरा होगा जग का उत्कर्ष राज।।

नववर्ष आगमन से जन में, आशा की नई किरण जागी।
बीते वर्षों की दुखद घड़ी, की यादें मन से है त्यागी।।

साकार नयन से हर मानव, कर रहा  अभिनंदन नववर्ष का।
और खिन्न हृदय से लोग सभी, छोड़े हैं आंचल गत वर्ष का।।

कर रहे कामना यही सभी, यह वर्ष तो अच्छा बीतेगा।
अपने शुभ आशीर्वादों से, जीवन खुशियों से भर देगा।।

दुःख, रोग, क्लेश, संताप मिटे यही कामना करते मंगलमय।
अब कोई मुसीबत ना आए, जीवन बीते सबका सुखमय।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #Newyear2025
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White आजकल खुद को बहुत जकड़ा हुआ पाता हूँ मैं।
बंध  गया  हूँ  दायरे  में   खुल  नहीं  पाता  हूँ  मैं।
हो  नहीं  पाता  हूँ  बाहर  उलझनों  की  क़ैद  से-
ज़िन्दगी  के  साथ  खुल  कर  रह  नहीं पाता  हूँ।

बोझ इक मन पर लिए हर दिन जिए जाता हूँ मैं।
सोच  के  अंधे  कुंए  में   रोज़  खो  जाता हूँ  मैं।
है  नहीं  मिलता किनारा, हल  नहीं मिलता  कोई-
ढूंढने  में  ख़ुद  को ख़ुद से  शून्य  हो  जाता हूँ  मैं।

कशमकश से मन भरा है कुछ न कर पाता हूँ।
वक्त के साँचे में क्यूँ कर ढल नहीं पाता हूँ मैं।
हो रहा है जो उसे स्वीकार करता जा औ चल-
सोच मत पगले अधिक मन को भी समझाता हूँ मैं।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #कशमकश
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