_________________ टूटे हुए सपनों की कीमत क्या लगाऊँ मैं अब क्या चीर कर दिल अपना दिखाऊँ मैं मेरे हालात तुम्हें कभी समझ ना आए है अब क्या चीख - चिल्ला कर बताऊँ मैं ताउम्र करती रही तुम और परिवार की सेवा तवे की रोटी तरह सिकती आ रही हूँ मैं सुबह उठते ही झाड़ू - पोछा बर्तन और हर घरों में बर्तनों की तरह बजती आ रही हूँ मैं इन सब के बदले में मांगा ही क्या"सम्मान" इसी सम्मान के लिए ठुकराई जा रही हूँ मैं अपना कर्म समझ सदियों से करती आई घरेलू महिला इसी नाम से जानी जा रही हूँ मैं ।। ♥️ Challenge-585 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।