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मरहटा छन्द. अब नैना तेरे , मुझको घेरे , रहते आठों

मरहटा छन्द.

अब नैना तेरे , मुझको घेरे , रहते आठों याम ।
मैं कैसे आऊँ , राह न पाऊँ , पनघट पे घनश्याम ।।
सुन राधा तेरी,  करती देरी , चलती है अविराम ।
है कहती मोहन , की मैं जोगन , मन है उनका धाम ।।

बालो का गजरा , नैना कजरा , करता है मनुहार ।
अब देर न करना , चलते रहना , करती प्रीत पुकार ।।
अब आओ बालम , बैठे है हम , चलने को तैयार ।
है छोटा सा घर , अपना है पर , खुशियों का त्यौहार ।।

२०/०९/२०२३     -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मरहटा छन्द.


अब नैना तेरे , मुझको घेरे , रहते आठों याम ।

मैं कैसे आऊँ , राह न पाऊँ , पनघट पे घनश्याम ।।

सुन राधा तेरी,  करती देरी , चलती है अविराम ।
मरहटा छन्द.

अब नैना तेरे , मुझको घेरे , रहते आठों याम ।
मैं कैसे आऊँ , राह न पाऊँ , पनघट पे घनश्याम ।।
सुन राधा तेरी,  करती देरी , चलती है अविराम ।
है कहती मोहन , की मैं जोगन , मन है उनका धाम ।।

बालो का गजरा , नैना कजरा , करता है मनुहार ।
अब देर न करना , चलते रहना , करती प्रीत पुकार ।।
अब आओ बालम , बैठे है हम , चलने को तैयार ।
है छोटा सा घर , अपना है पर , खुशियों का त्यौहार ।।

२०/०९/२०२३     -     महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मरहटा छन्द.


अब नैना तेरे , मुझको घेरे , रहते आठों याम ।

मैं कैसे आऊँ , राह न पाऊँ , पनघट पे घनश्याम ।।

सुन राधा तेरी,  करती देरी , चलती है अविराम ।

मरहटा छन्द. अब नैना तेरे , मुझको घेरे , रहते आठों याम । मैं कैसे आऊँ , राह न पाऊँ , पनघट पे घनश्याम ।। सुन राधा तेरी,  करती देरी , चलती है अविराम । #कविता