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mahendrasinghpra8571
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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मुक्तक  :- 

मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता ।
फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता ।
शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुंदर है -
यूँ मानों अब देख उसे मुझको मिलती शीतलता ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मुक्तक  :- चंचल मन


मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता ।

फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता ।

शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुंदर है -

मुक्तक  :- चंचल मन मेरे मन को भाती है उसके मन की चंचलता । फूलो से भी नाजुक है उसके तन की कोमलता । शब्दों में कैसे बयाँ करूँ वो कितनी सुंदर है - #कविता

8 Love

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

कुण्डलिया :-
जीवन पथ की नित सुगम , राह दिखाते संत ।
इनकी सेवा से सदा,  खुश होते भगवंत ।।
खुश होते भगवंत , अमंगल कभी न करते ।
जो करते हैं पाप , वही नित इनसे डरते ।।
महके ये घर द्वार , और महके यह उपवन ।
कर लो अच्छे कर्म , यही कहता है जीवन ।।

      महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :-


जीवन पथ की नित सुगम , राह दिखाते संत ।

इनकी सेवा से सदा,  खुश होते भगवंत ।।

खुश होते भगवंत , अमंगल कभी न करते ।

कुण्डलिया :- जीवन पथ की नित सुगम , राह दिखाते संत । इनकी सेवा से सदा,  खुश होते भगवंत ।। खुश होते भगवंत , अमंगल कभी न करते । #कविता

11 Love

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

White मनहरण घनाक्षरी :- साथ-साथ चले हम , रहे नही कोई गम ,
बीती सारी बातें अब , तुम भी बिसारिये ।
चाँद सी है महबूबा , सब देख-देख डूबा ,
आप भी एक नज़र , इधर निहारिये ।
बात कहूँ लाख टका , जब-जब तुम्हें तका ,
दिल कहे एक बार , आप भी पुकारिये ।
रूप है सलोना यह, दिल न खिलौना यह,
बात मेरी मानकर , प्रीत से सँवारिये ।


महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी :- साथ-साथ चले हम , रहे नही कोई गम ,
बीती सारी बातें अब , तुम भी बिसारिये ।
चाँद सी है महबूबा , सब देख-देख डूबा ,
आप भी एक नज़र , इधर निहारिये ।
बात कहूँ लाख टका , जब-जब तुम्हें तका ,
दिल कहे एक बार , आप भी पुकारिये ।
रूप है सलोना यह, दिल न खिलौना यह,
बात मेरी मानकर , प्रीत से सँवारिये ।

मनहरण घनाक्षरी :- साथ-साथ चले हम , रहे नही कोई गम , बीती सारी बातें अब , तुम भी बिसारिये । चाँद सी है महबूबा , सब देख-देख डूबा , आप भी एक नज़र , इधर निहारिये । बात कहूँ लाख टका , जब-जब तुम्हें तका , दिल कहे एक बार , आप भी पुकारिये । रूप है सलोना यह, दिल न खिलौना यह, बात मेरी मानकर , प्रीत से सँवारिये । #कविता

11 Love

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

White ग़ज़ल:- वो ख्वाबों की दुनिया सजाने लगे थे
हमें देखने आने जाने लगे थे ।।
छुपाने पड़े थे हमें भी तो आँसूँ ।
सनम दूर हमसे जो जाने लगे थे ।।
नज़र जब कभी इत्तफाकन मिली तो 
उन्हें देख कर मुस्कराने लगे थे ।।
यहाँ चाँद सबको कहाँ मिल सका है ।
चरागों से जीवन बिताने लगे थे ।।
कभी चैन हमको न आया किसी पल ।
सुनो हाल दिल जब छुपाने लगे थे ।।
अभी भी तरसती है आँखें उन्ही को ।
जिन्हें दिल में अपने बसाने लगे थे ।।
हुए दूर हमसे वही आज फिर से ।
जिन्हें ज़िन्दगी हम बनाने लगे थे ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल:- वो ख्वाबों की दुनिया सजाने लगे थे
हमें देखने आने जाने लगे थे ।।
छुपाने पड़े थे हमें भी तो आँसूँ ।
सनम दूर हमसे जो जाने लगे थे ।।
नज़र जब कभी इत्तफाकन मिली तो 
उन्हें देख कर मुस्कराने लगे थे ।।
यहाँ चाँद सबको कहाँ मिल सका है ।
चरागों से जीवन बिताने लगे थे ।।

ग़ज़ल:- वो ख्वाबों की दुनिया सजाने लगे थे हमें देखने आने जाने लगे थे ।। छुपाने पड़े थे हमें भी तो आँसूँ । सनम दूर हमसे जो जाने लगे थे ।। नज़र जब कभी इत्तफाकन मिली तो  उन्हें देख कर मुस्कराने लगे थे ।। यहाँ चाँद सबको कहाँ मिल सका है । चरागों से जीवन बिताने लगे थे ।। #शायरी

12 Love

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

सोरठा :-
सूर्यदेव का ताप , नित्य ही बढता जाता ।
नर नारी सब आज , नजर घूंघट में आता ।।

लियो मजा तुम खूब , सदा पक्की सड़को का ।
करना क्या है आज ,  पहाड़ो औ झरनों का ।।

महल बने फिर चार ,  वृक्ष हो बिल्कुल छोटे ।
गेंदा चंपा छोड़ , वृक्ष सब लगते खोटे ।।

हँसते घूंघट काढ , दिखे सारी बत्तीसी ।
फल कर्मो का आज, निकाले सबकी खीसी ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सोरठा :-


सूर्यदेव का ताप , नित्य ही बढता जाता ।

नर नारी सब आज , नजर घूंघट में आता ।।

सोरठा :- सूर्यदेव का ताप , नित्य ही बढता जाता । नर नारी सब आज , नजर घूंघट में आता ।। #कविता

11 Love

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

White दोहा

संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान ।
हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।।

जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान ।
बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।।

प्रकृति मोह सबमें रहे , चाहूँ मैं वरदान ।
तेरी माया के बिना , यह जग है अज्ञान ।।

अब तो नंगे नाँच से , जगत रहा पहचान ।
अंग-अंग रहता खुला , कहता ऊँची शान ।।

 बदन सभी ले ढाँक हम , वसन मिलें दो चार ।
वह भी फैशन में छिने , अब सब बे अधिकार ।।

मातु-पिता अब दूर हैं , सास-ससुर अब पास ।
भैय्या-भाभी कुछ नहीं , साला-साली खास ।।

जीवन के हर मोड़ पर , दिया तुम्हीं ने घात ।
अब आकर तुम कर रहे , मुझसे प्यारी बात ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा

संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान ।
हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।।

जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान ।
बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।।

दोहा संतो की वाणी सुनो , सब जन करके ध्यान । हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।। जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान । बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।। #कविता

10 Love

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

White दोहा :-

संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान ।
हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।।
जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान ।
बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।।
प्रकृति मोह सबमें रहे , चाहूँ मैं वरदान ।
तेरी माया के बिना , यह जग है अज्ञान ।।
अब तो नंगे नाँच से , जगत रहा पहचान ।
अंग-अंग रखकर खुला , कहता ऊँची शान ।।
 बदन सभी ले ढाँक हम , वसन मिलें दो चार ।
वह भी फैशन में छिने , हमसे सब अधिकार ।।
मातु-पिता अब दूर हैं , सास-ससुर अब पास ।
भैय्या-भाभी कुछ नहीं , साला-साली आस ।।
जीवन के हर मोड़ पर , दिया तुम्हीं ने घात ।
अब आकर तुम कर रहे , मुझसे प्यारी बात ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान ।

हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।।


जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान ।

बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।।

संतो की वाणी सुनो ,  सब जन करके ध्यान । हो जायेगा नष्ट सब , सारा तम अभिमान ।। जीवों को आहार मत , बनने दो भगवान । बरसाओ इन पर कृपा , मानव को दो ज्ञान ।। #कविता

12 Love

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

उडियाना छन्द :-
स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें ।
और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।।
जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा ।
देखता हूँ फिर वहाँ , घेरकर सब खड़ा ।।

मारकर सब डुबकियां ,  पाप धोने चले ।
मातु गंगा सोचती , तनय कैसे पले ।।
पीर इनकी सब मिटे,  और आगे बढ़े ।
राह जीवन की सभी , स्वयं चलकर गढ़े ।।

कष्ट सारे झेलकर , चक्षु  जिनके खुले ।
राम-सिय जपते रहे , श्वास जब तक चले ।।
लौट जायें वो सभी, सुगम पथ पर कहीं ।
विनय करता यह प्रखर , आप ठहरे वहीं ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 

उडियाना छन्द :-
स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें ।
और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।।
जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा ।
देखता हूँ फिर वहाँ , घेरकर सब खड़ा ।।

उडियाना छन्द :- स्वाद में सब जन बहे , जीव हत्या करें । और देते ज्ञान हैं , पाप क्यों सिर धरे ।। जानते है सब यहीं , पाप है ये बड़ा । देखता हूँ फिर वहाँ , घेरकर सब खड़ा ।। #कविता

15 Love

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विजात छन्द :-

हमारा श्याम खाटू है । हृदय मे देख टैटू है ।।
हरे वो पीर सब मेरी । लगाये मत कभी देरी ।।

भला सबका वही करता । सुनो विश्वास जग करता ।।
बुलावे पे नही जाना । करे जो दिल चले जाना ।।

हुआ हूँ आज दीवाना । उसी को आज सब माना ।।
करूँ क्यूँ चाहतें आधा । जपूँगा नाम नित राधा ।।

वही मुरली मनोहर है । उसी की सब धरोहर है ।।
बनूँ मैं दास मोहन का । यही अरदास जीवन का ।।

मुझे अपने शरण रखना । बुराई से बचा रखना ।।
न कलयुग की पड़े छाया । शरण तेरी चला आया ।।

सुनी तेरी कथा सारी , बहुत महिमा रही न्यारी ।।
तुम्हारे द्वार जब आऊँ, दरश हर बार मैं पाऊँ ।।

नजर जाये जिधर भी वह, रहे उजियार मधुवन वह ।।
करूँ क्यों बन्द मैं फेरी , कृपा होगी कभी तेरी ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विजात छन्द :-


हमारा श्याम खाटू है । हृदय मे देख टैटू है ।।

हरे वो पीर सब मेरी । लगाये मत कभी देरी ।।

विजात छन्द :- हमारा श्याम खाटू है । हृदय मे देख टैटू है ।। हरे वो पीर सब मेरी । लगाये मत कभी देरी ।। #कविता

13 Love

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

White ग़ज़ल :-
प्यार की हमको निशानी दे गया ।
इस तरह की ज़िन्दगानी दे गया ।।
कुछ तो था जो वो जवानी दे गया ।
प्रीत को अपनी कहानी दे गया ।।
कल हँसाया उसने तो था प्यार से ।
आज आखों में जो पानी दे गया ।।
ले गया जिसको उठाकर गोद से ।
देख वो बेटी सयानी दे गया ।।
फिर नहीं धोखा मिले वो इसलिए ।
यार मेरा सुरमेदानी दे गया ।।
उम्र आते ही जब सँभलने वो लगा ।
शाम फिर मुझको सुहानी दे गया ।।
है गुमां किस बात का अब आजकल ।
चीज़ वह सारी पुरानी दे गया ।।
प्यार मे तुम भी बने पागल रहो ।
सोचकर शायद ये बानी दे गया ।।
यूँ हँसो मत अब प्रखर सोचो ज़रा ।
क्यों तुम्हें वो अपनी रानी दे गया ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-


प्यार की हमको निशानी दे गया ।

इस तरह की ज़िन्दगानी दे गया ।।

ग़ज़ल :- प्यार की हमको निशानी दे गया । इस तरह की ज़िन्दगानी दे गया ।। #शायरी

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