नुक्कड़ के दाएं मोड़ पे मिलती शराब है-२ हर शख्स थामे हाथ मे इसे कहता खराब है.. नुक्कड़ के दाएं मोड़ पे शामें तो रोशन चाँद से ए जानिब रात भर,-२ शर्मोहया के प्यालो में ढलता आफताब है.. नुक्कड़ के दाएं मोड़ पे प्यालो की पगड़ी थामता गमों में है शहर -2 खुशियों के अधूरे दौर में हकीकत अज़ाब हैं नुक्कड़ के दाएं मोड़ पे आकड़ो के खेल में हम उलझे ही रह गए -2 हिसाब करके मेरा चला गया जो खुद बेहिसाब है.. नुक्कड़ के दाएं मोड़ पे छीन लेने के फिराक में घूमता है ये शहर, आंखों में जो पल रहे मेरे नन्हे से ख्वाब है.. नुक्कड़ के दाएं मोड़ पे ©Jajbaat-e-Khwahish(जज्बात) नुक्कड़ के दाएं मोड़ पे मिलती शराब है-२ हर शख्स थामे हाथ मे इसे कहता खराब है.. नुक्कड़ के दाएं मोड़ पे शामें तो रोशन चाँद से ए जानिब रात भर,-२ शर्मोहया के प्यालो में ढलता आफताब है.. नुक्कड़ के दाएं मोड़ पे