प्रीतिकर लगती हैँ बाते विवेक की ज्ञान और दर्शन कीलेकिन बातो से होगा क्या ... बाते तो बाते ही हैँ न ही उनसे पेट भरता न उनसे मांस मज्जा ही बनती सुंदर शब्दों क़े श्रवण से तुम ज्ञानी तो बन सकते हो पर जब तक ध्यानी नहीं बनते होश नहीं जगता तुम्हारा ये ज्ञान दो कौड़ी से ज्यादा का महत्व नहीं रखता प्रीतिकर बाते.......