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"ज़रा तस्वीर से तू निकल के सामने आ मेरी महबूबा" क

"ज़रा तस्वीर से तू निकल के सामने आ मेरी महबूबा" 
क्या सचमुच में प्रेमीकाएँ तस्वीर से निकलती होंगी छोड़ जाने के बाद ? क्या तस्वीरों में होता है कोई वार्म होल ? इन्हीं सब सवालों के जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करते हुए वो शख्स अपने हाथ में पकड़ी हुई तस्वीर को एकटक देखे जा रहा था , ये तस्वीर उसकी प्रेमिका की थी । दो महीने पहले उसने आखिरी बार अपनी प्रेमिका से फोन पर बात की थी उस दिन वो फूट फूट कर रोई थी इसलिए नहीं कि वो दोनों बिछड़ चुके थे बल्कि इसलिए कि वो लड़का अभी भी वहीं था । उस लड़की ने बहुत कोशिश की थी उस लड़के को सब भुला कर ज़िन्दगी में आगे बढ़ाने के लिए मगर वो लड़का कभी उसकी बात नहीं सुनता था । हक़ीक़त को हक़ीक़त ना मानना मीठे ज़हर की तरह होता है , शुरूआत में मीठा तो लगेगा मगर तड़पा तड़पा कर मार डालेगा । लड़के की आँख से आंसू का एक क़तरा जैसे ही उस तस्वीर पर गिरता है , पुरे कमरे में अंधेरा छा जाता है , लड़का खुद को जमीन पर असहाय लेटा पाता है । लड़के को धुंधली आंखों से घर की छत में एक सफ़ेद सुराख़ होता नज़र आता है , लड़के के हाथ से वो तस्वीर निकल कर उपर उस सुराख़ की तरफ़ उठने लगती और कानों में गूंजती है डोर बेल की आवाज , लड़का अपनी सारी ताक़त लगा कर उस तस्वीर को पकड़ने की कोशिश करता है ,वो तस्वीर उस सुराख़ से बाहर निकल जाती है और लड़का भी उसके पीछे पीछे उस सुराख़ से निकल आता है । अब कमरे के अंदर ज़मीन पर पड़ी होती एक ज़हर की शीशी और एक लाश , दरवाज़े पर अब भी एक लड़की बेल बजाए जा रही है और आवाज लगाए जा रही है...तुम सुन रहे हो ना...
- वो फिर आएगी #love #इश्क़ #nojoto #nojotohindi #हिंदी
"ज़रा तस्वीर से तू निकल के सामने आ मेरी महबूबा" 
क्या सचमुच में प्रेमीकाएँ तस्वीर से निकलती होंगी छोड़ जाने के बाद ? क्या तस्वीरों में होता है कोई वार्म होल ? इन्हीं सब सवालों के जवाब ढूंढ़ने की कोशिश करते हुए वो शख्स अपने हाथ में पकड़ी हुई तस्वीर को एकटक देखे जा रहा था , ये तस्वीर उसकी प्रेमिका की थी । दो महीने पहले उसने आखिरी बार अपनी प्रेमिका से फोन पर बात की थी उस दिन वो फूट फूट कर रोई थी इसलिए नहीं कि वो दोनों बिछड़ चुके थे बल्कि इसलिए कि वो लड़का अभी भी वहीं था । उस लड़की ने बहुत कोशिश की थी उस लड़के को सब भुला कर ज़िन्दगी में आगे बढ़ाने के लिए मगर वो लड़का कभी उसकी बात नहीं सुनता था । हक़ीक़त को हक़ीक़त ना मानना मीठे ज़हर की तरह होता है , शुरूआत में मीठा तो लगेगा मगर तड़पा तड़पा कर मार डालेगा । लड़के की आँख से आंसू का एक क़तरा जैसे ही उस तस्वीर पर गिरता है , पुरे कमरे में अंधेरा छा जाता है , लड़का खुद को जमीन पर असहाय लेटा पाता है । लड़के को धुंधली आंखों से घर की छत में एक सफ़ेद सुराख़ होता नज़र आता है , लड़के के हाथ से वो तस्वीर निकल कर उपर उस सुराख़ की तरफ़ उठने लगती और कानों में गूंजती है डोर बेल की आवाज , लड़का अपनी सारी ताक़त लगा कर उस तस्वीर को पकड़ने की कोशिश करता है ,वो तस्वीर उस सुराख़ से बाहर निकल जाती है और लड़का भी उसके पीछे पीछे उस सुराख़ से निकल आता है । अब कमरे के अंदर ज़मीन पर पड़ी होती एक ज़हर की शीशी और एक लाश , दरवाज़े पर अब भी एक लड़की बेल बजाए जा रही है और आवाज लगाए जा रही है...तुम सुन रहे हो ना...
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