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रोते रोते मुस्कुराने का हुनर हमने सीखा है, पलकों क

रोते रोते मुस्कुराने का हुनर हमने सीखा है,
पलकों को भी हमने आंसुओं से सींचा है।
बरसे तो थे कभी आंसू बिन बरसात के मौसम में
जब दुनिया को पहचानने का हुनर हमने सीखा था।
दिल ने आवाज दी थी मयखाने से,
जहां आंखों ने  पैमानों को भरा था,
कैद थी मुस्कुराहट उस बोतल में 
जहां मुस्कुराने का हुनर हमने सीखा था।
 ©️ प्रवीण सिन्हा

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Pravin sinha

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