मुहब्त का ज़ोर अज्माते हैं चलो बिछड़ जाते हैं ॥ वो दिल में नफरत रखते हैं इछ्क के गीत गाते हैं ॥ देखो बादल बरसा है आयो भीग जाते हैं ॥ चाहे सपनों में सही वोह मिलने आते हैं ॥ रात को रौछ्न करते हैं अपना दिल जलाते हैं ॥ किसी से बच्पन मांगा है थौढा बह्क जाते हैं ॥ वोह मेरा घर ज़ल रहा है एक तस्बीर बनाते हैं ॥ एक ऊमीद अभी तक मरी नही चलो मिलके गला दबाते हैं ॥ तेरे ख़त को ख़त रहने दो मेरे ख़त की कश्ती बहाते हैं ॥ जात-पात की दिवार गिराते हैं मसजिद़ में राम बिठाते हैं ॥ वोह पत्थर तो बस पत्थर है भूक्खे को अंन खिलाते हैं ॥ मैं आज की रात जिन्दां हूँ आज तो जश़न मनाते हैं ॥ © अमर संघर #OpenPoetry मुहब्त का ज़ोर अज्माते हैं चलो बिछड़ जाते हैं ॥ वो दिल में नफरत रखते हैं इछ्क के गीत गाते हैं ॥ देखो बादल बरसा है आयो भीग जाते हैं ॥