घर से उठाए झोला मुसाफ़िर चल पड़ा अपने मुकाम में भटकते हुए छोटे बड़े रास्तो से तलाश ए मंजिल के लिए चाहे सफर हो मुश्किल या आसान कहीं दिन हो या कहीं पर रात कभी घनघोर तारों की छांव या चांदनी नहलाती हो पांव या सुबह सुबह सूरज चुमता हो रुखसार कहीं पर छाया हो कोहरा और दिखाई ना देता हो आगे का रास्ता