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ग़ज़ल-२६१ (१२२२-१२२२-१२२) --------------------------

ग़ज़ल-२६१ (१२२२-१२२२-१२२)
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मज़े सब सूफ़ियाना चाहता हूँ
मैं संसद चुन के जाना चाहता हूँ //१

बना कर मूर्ख छोटी मछलियों को
बड़ी मछली फँसाना चाहता हूँ //२

सियासत को पड़ा मिर्गी का दौरा
उसे जूता सुँघाना चाहता हूँ //३

जहाँ का फ़ोन उठ जाए समय पर
मैं इक ऐसा भी थाना चाहता हूँ //४

जो रिश्वतख़ोर हैं उनके मकाँ पे
मैं बुलडोज़र चलाना चाहता हूँ //५

खुले में मुजरिमों के वास्ते अब 
सज़ा-ए-ताज़ियाना चाहता हूँ //६

रहूँ पी कर भी चुप तो क्या मज़ा है 
मैं पीकर बड़बड़ाना चाहता हूँ //७

सभी से कह दो कर लें बंद आँखें 
मैं सच नंगा दिखाना चाहता हूँ //८

पता मुझको नहीं है 'राज़' ख़ुद भी
मैं क्यों ठेके पे जाना चाहता हूँ //९

#राज़_नवादवी #AlvidaJumma
ग़ज़ल-२६१ (१२२२-१२२२-१२२)
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मज़े सब सूफ़ियाना चाहता हूँ
मैं संसद चुन के जाना चाहता हूँ //१

बना कर मूर्ख छोटी मछलियों को
बड़ी मछली फँसाना चाहता हूँ //२

सियासत को पड़ा मिर्गी का दौरा
उसे जूता सुँघाना चाहता हूँ //३

जहाँ का फ़ोन उठ जाए समय पर
मैं इक ऐसा भी थाना चाहता हूँ //४

जो रिश्वतख़ोर हैं उनके मकाँ पे
मैं बुलडोज़र चलाना चाहता हूँ //५

खुले में मुजरिमों के वास्ते अब 
सज़ा-ए-ताज़ियाना चाहता हूँ //६

रहूँ पी कर भी चुप तो क्या मज़ा है 
मैं पीकर बड़बड़ाना चाहता हूँ //७

सभी से कह दो कर लें बंद आँखें 
मैं सच नंगा दिखाना चाहता हूँ //८

पता मुझको नहीं है 'राज़' ख़ुद भी
मैं क्यों ठेके पे जाना चाहता हूँ //९

#राज़_नवादवी #AlvidaJumma
raznawadwi7818

Raz Nawadwi

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