"ग़ज़ल का ककहरा" पुस्तक के लेखक। कलमी नाम राज़ नवादवी, पैतृक/मात्रिक नाम मनोज कुमार सिन्हा। नवादा, बिहार की पैदाइश। पटना और दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य, मनोविज्ञान, दर्शन शास्त्र, एवं समाज कार्य का अध्ययन किया। उच्चतम डिग्री स्नातकोत्तर। 29 वर्षों से सामाजिक विकास की परियोजनाओं पर कार्यरत। 15 से ज़्यादा राज्यों में सरकारी, स्वयंसेवी, एवं कॉरपोरेट सेक्टर की संस्थाओं के साथ जनविकास की योजनाओं का क्रियान्वयन किया। पिछले 13 वर्षों से भोपाल में आवास। तरुणावस्था से ही हिंदी, उर्दू, और मिर्ज़ा ग़ालिब से लगाव रहा। उर्दू का ज्ञान स्वयं के प्रयासों से प्राप्त किया। अब तक 1000 से ज़्यादा मेयारी ग़ज़लों की रचना, वह भी सिर्फ़ 3.5 वर्षों के सघन लेखन काल में, 100 से अधिक हिंदी अतुकांत कविताओं का सृजन, 100 से अधिक डायरी के पन्नों का लेखन, 100 से अधिक ग़ज़ल के छंद शास्त्र एवं ग़ज़ल लिखने की बारीक़ियों पर मौलिक लेख। इनके अलावा योग एवं अध्यात्म में गहरी रुचि। शतरंज, क्रिकेट, संगीत, जानवरों, विशेषकर कुत्तों, एवं पुस्तकों से गहरा लगाव। एक अच्छा कुक एवं व्यवस्थापक। साहित्य में सौंदर्य, प्रेम, जीवन की विवशता, एवं दिव्य अनुभवों के चित्रण की ओर विशेष झुकाव। आध्यात्मिक विचार- पूरी सृष्टि के केंद्र में ईश्वर है जबकि मनुष्य परिधि पे। जीवन का लक्ष्य केंद्र की ओर बढ़ना है। समस्त चराचर जगत स्वप्न मात्र है, मगर जब तक हम इस स्वप्न में हैं तब तक यह एक सच्चाई है। इस वैश्विक स्वप्न से जागना एवं चैतन्य अवस्था में बाहर निकल पाना ही मोक्ष है। ईश्वर के अलावा कुछ भी सत्य नहीं है। @राज़ नवादवी
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