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ख्वाहिश है दफ़न कर दूं मैं खुद को, ये सितम अब और स

ख्वाहिश है दफ़न कर दूं मैं खुद को,
ये सितम अब और सहन नहीं होते,
कि,
ख्वाहिश है दफ़न कर दूं मैं खुद को,
ये सितम अब और सहन नहीं होते,
मौत तो एक हसीन नज़ारा है,
जिंदगी ने तो हर पल सताया है ।

©Dhirendra Pratap Srivastav
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