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दशहरा दशानन की शक्तियां अनन्य थीं, पर गुनाहों की

दशहरा 

दशानन की शक्तियां अनन्य थीं,
पर गुनाहों की सूची जघन्य थीं।
भक्ति कर ब्रम्हा जी से वर पाया,
पर मन से निर्मल नहीं हो पाया।
शक्तियों का उसे बहुत अहम था,
नहीं मरेगा वो कभी ये वहम था।
अधिक भक्त था वह महेश्वर का,
पर आभारी नहीं था देवेश्वर का।
राक्षस स्वभाव का था जो ठहरा,
दुष्ट था घात करता था वो गहरा।
द्वेष में उसने माता सीता चुराई,
श्री राम से ही उसने मुक्ति पाई।
आज दशहरा मनाते हैं हम सब,
पुतले को जलता देखते हम तब।
पर मन के रावण को कैसे मिटाएं,
जो भीतर हमारे, मुक्ति कैसे पाएं।
रावण के दुष्कर्मों को अपना लिया,
किस अधिकार से उसे जला दिया।
श्री राम के नहीं हैं हम रज भर भी,
उनके जैसा बन पाते हम सब भी।
संख्या ही नहीं बढ़ती अपराधों की,
सीमा होती दर्द भरी आघातों की।
नारी का भी जग में तब मान होता,
अगर संस्कारों का हमें ध्यान होता।
दशानन भी ऊपर से सोचता होगा,
मन ही मन वो भी तब कुढ़ता होगा।
पुतले को भी तो मेरे किसने जलाया,
जिसने दुष्टता को ही प्रतीक बनाया।
इतने बुरे दिन आ गए अब देखो मेरे,
अत्याचारी ही ये पुतले जला रहे मेरे।
अब कब आयेंगे फिर से वो श्री राम,
जिनके चरणों में ही करूं अब प्रणाम।
....................................................
देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit #Dussehra 

दशहरा 

दशानन की शक्तियां अनन्य थीं,
पर गुनाहों की सूची जघन्य थीं।
भक्ति कर ब्रम्हा जी से वर पाया,
पर मन से निर्मल नहीं हो पाया।
दशहरा 

दशानन की शक्तियां अनन्य थीं,
पर गुनाहों की सूची जघन्य थीं।
भक्ति कर ब्रम्हा जी से वर पाया,
पर मन से निर्मल नहीं हो पाया।
शक्तियों का उसे बहुत अहम था,
नहीं मरेगा वो कभी ये वहम था।
अधिक भक्त था वह महेश्वर का,
पर आभारी नहीं था देवेश्वर का।
राक्षस स्वभाव का था जो ठहरा,
दुष्ट था घात करता था वो गहरा।
द्वेष में उसने माता सीता चुराई,
श्री राम से ही उसने मुक्ति पाई।
आज दशहरा मनाते हैं हम सब,
पुतले को जलता देखते हम तब।
पर मन के रावण को कैसे मिटाएं,
जो भीतर हमारे, मुक्ति कैसे पाएं।
रावण के दुष्कर्मों को अपना लिया,
किस अधिकार से उसे जला दिया।
श्री राम के नहीं हैं हम रज भर भी,
उनके जैसा बन पाते हम सब भी।
संख्या ही नहीं बढ़ती अपराधों की,
सीमा होती दर्द भरी आघातों की।
नारी का भी जग में तब मान होता,
अगर संस्कारों का हमें ध्यान होता।
दशानन भी ऊपर से सोचता होगा,
मन ही मन वो भी तब कुढ़ता होगा।
पुतले को भी तो मेरे किसने जलाया,
जिसने दुष्टता को ही प्रतीक बनाया।
इतने बुरे दिन आ गए अब देखो मेरे,
अत्याचारी ही ये पुतले जला रहे मेरे।
अब कब आयेंगे फिर से वो श्री राम,
जिनके चरणों में ही करूं अब प्रणाम।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit #Dussehra 

दशहरा 

दशानन की शक्तियां अनन्य थीं,
पर गुनाहों की सूची जघन्य थीं।
भक्ति कर ब्रम्हा जी से वर पाया,
पर मन से निर्मल नहीं हो पाया।
deveshdixit4847

Devesh Dixit

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#Dussehra दशहरा दशानन की शक्तियां अनन्य थीं, पर गुनाहों की सूची जघन्य थीं। भक्ति कर ब्रम्हा जी से वर पाया, पर मन से निर्मल नहीं हो पाया। #कविता