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जिन्दगी किसी नदी से तो कम नहीं, जन्म और मृत्यु दो

जिन्दगी किसी नदी से तो कम नहीं,
जन्म और मृत्यु दो किनारे ही तो हैं
अन्तर यही है कि इसके किनारे एक से नहीं,
जहां से शुरू होता वहां लौटना मुमकिन नहीं,
दोनों ही किनारों की अहमियत है अपनी अपनी,
एक नदी में उतारता, दूसरा दूर ले जाता कहीं;
एक किनारे से दूसरे तक जाना तय है पहले से ही
चाहे डूबे या तैरे, पार तो उतरना है ही,
दोनों किनारों के बीच बनती है कहानी कई;

एक कहानी लिखी हमने भी अपनी
जब दम घुटकर डूबने लगे हम 
किनारे तक पहुंचने की बस आस रही,
कुछ पल रुके रहे  बेजान से हम यूं ही,
फिर तैरते हुए निकल आए आप ही
नाप ली ज़िन्दगी रूपी नदी की गहराई
और जगाई अपने भीतर एक आस नई,
नदी को बना लूं अंतरंग सहेली अपनी
इससे पहले कि पहुंचूं किनारे पर कभी।
©अनुपम मिश्र #लाइफ #ज़िन्दगी
जिन्दगी किसी नदी से तो कम नहीं,
जन्म और मृत्यु दो किनारे ही तो हैं
अन्तर यही है कि इसके किनारे एक से नहीं,
जहां से शुरू होता वहां लौटना मुमकिन नहीं,
दोनों ही किनारों की अहमियत है अपनी अपनी,
एक नदी में उतारता, दूसरा दूर ले जाता कहीं;
एक किनारे से दूसरे तक जाना तय है पहले से ही
चाहे डूबे या तैरे, पार तो उतरना है ही,
दोनों किनारों के बीच बनती है कहानी कई;

एक कहानी लिखी हमने भी अपनी
जब दम घुटकर डूबने लगे हम 
किनारे तक पहुंचने की बस आस रही,
कुछ पल रुके रहे  बेजान से हम यूं ही,
फिर तैरते हुए निकल आए आप ही
नाप ली ज़िन्दगी रूपी नदी की गहराई
और जगाई अपने भीतर एक आस नई,
नदी को बना लूं अंतरंग सहेली अपनी
इससे पहले कि पहुंचूं किनारे पर कभी।
©अनुपम मिश्र #लाइफ #ज़िन्दगी