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एक अजीब दौड़ में हम जी रहे है सोशल मिडिया के अनजाने

एक अजीब दौड़ में हम जी रहे है
सोशल मिडिया के अनजाने रिश्ते बधाई देतें हूए थकते नहीं /
अपने एक छत के नीचें रहकर भी मुहँ खोलते नहीं??
जी हाँ मैं बात कर रही हूंँ,
 बहू की
घर की चाभियाँ थमाते हूए सास ने
अधिकार की पुरी बात समझा दी मगर उत्तराधिकारी बनाना
 शायद भुल गई तभी तो उनका रिश्ता 'आज भी व्हेचेयर पे पड़ा है
कहते है वक्त धीरे धीरे सब कुछ बदल देतीं है और त्याग  जगह 
बना लेतीं है लेकिन सच कहूँ तो/ यह बात केवल किताबी ज्ञान बन चुकी हैं!!

आम का पौधा लगने के  तीन साल बाद फलने- फूलने लगता है
 लेकिन बहू के आने के सोलह(16) साल बाद भी/ 
सास के मुहँ से ना निकले  'खुश रहों '
तो????
उस बहू से बडी अभाग्य कौन होगीं%
सारी दुनिया सोशल साइट्स से लेकर रिश्तेदार तक बधाई दे रहे हो
 लेकिन सासु माँ की चुप्पी अटल शीला सा  बन चुभती रहीं/ 
यह लेख उनके लिए, जो कहते है 
सास-बहू के रिश्तों में सुधार आ रहे है'
जबकि हमारे गांव की स्थिति आज भी वही की वहीं हैं?
गांव के गलियारों में  बहू का जन्मदिन  मनाना तो दूर/मस्तक
 पे हाथ रखकर आशिष देने मे भी किल्लत होती हैं%
 क्योंकि बहू/बेटी नहीं बल्कि रसोई में तपने वाली रोटी होतीं हैं
खैरHappy birthday जिदंगी 🎉🎂🎂

©पूर्वार्थ
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