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विजात छन्द प्रणय करती तुम्हीं से मैं । बनूँ हरि आज

विजात छन्द
प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।
बनूँ हरि आज दासी मैं ।।
करो अब मुक्त बंधन से ।
लगा है नेह नंदन से ।।

तुम्हारा हार हो जाऊँ ।
खुदी को हार जो जाऊँ ।।
हृदय मुझको बिठा लेना ।
नहीं फिर से दगा देना ।।

यही तो शुभ दिवस अपना ।
हुआ तय माँग तुम भरना ।।
चलूंगी साथ मैं तेरे ।
करूंगी सात जब फेरे ।।

दिखाये थे तुम्हें सपने ।
उन्हें पूरे किये हमने ।।
बिठाकर अब तुम्हें लाये ।
हृदय पट खोल दिखलाये ।।

वचन तुम सब निभाओगी ।
नहीं तुम छोड़ जाओगी ।।
चलेगी साँस यह जब तक ।
रहोगी साथ तुम तब तक ।।

भरोसा तुम यही करना ।
नही फिर आँह तुम भरना ।।
बनूँगी मैं सदा छाया ।
जगत की छोड़कर माया ।।

१३/१२/२०२३   -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 1222    1222

विजात छन्द


प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।

बनूँ हरि आज दासी मैं ।।
विजात छन्द
प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।
बनूँ हरि आज दासी मैं ।।
करो अब मुक्त बंधन से ।
लगा है नेह नंदन से ।।

तुम्हारा हार हो जाऊँ ।
खुदी को हार जो जाऊँ ।।
हृदय मुझको बिठा लेना ।
नहीं फिर से दगा देना ।।

यही तो शुभ दिवस अपना ।
हुआ तय माँग तुम भरना ।।
चलूंगी साथ मैं तेरे ।
करूंगी सात जब फेरे ।।

दिखाये थे तुम्हें सपने ।
उन्हें पूरे किये हमने ।।
बिठाकर अब तुम्हें लाये ।
हृदय पट खोल दिखलाये ।।

वचन तुम सब निभाओगी ।
नहीं तुम छोड़ जाओगी ।।
चलेगी साँस यह जब तक ।
रहोगी साथ तुम तब तक ।।

भरोसा तुम यही करना ।
नही फिर आँह तुम भरना ।।
बनूँगी मैं सदा छाया ।
जगत की छोड़कर माया ।।

१३/१२/२०२३   -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 1222    1222

विजात छन्द


प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।

बनूँ हरि आज दासी मैं ।।

1222    1222 विजात छन्द प्रणय करती तुम्हीं से मैं । बनूँ हरि आज दासी मैं ।। #कविता