आजकल नज़रें मिलाकर वो हमसे निकल जाते हैं अब जाना लोग हवाओं के जैसे यूँ पल में बदल जाते हैं धरी रह गयीं सभी ख़्वाहिशें जो मन में अपने बसाये थे हमने रोका बहुत अश्क़ों को हमने पर धीमें सही वो निकल आते हैं इक शीशे का घर भी बनाया था हमनें..... पर ये शीशे के घर भी टुकड़ों में अक्सर बिखर जाते हैं कभी रातों को हम भी अक्सर जगते थे यादों में उनके पर ख़्वाबों में अब वो और किसी के बहल जाते हैं वो तसव्वुर के हसीं लम्हें अब भी याद आते हैं अक्सर पर याद आते हैं जब भी बेहद हम टूटे जाते हैं ।। राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी ©Raone avoid