कच्चा कच्चा रहल जवन सब अब नीमन, गदराइल बा बुढ़वा आम, बगइचा कै देखव कइसन, बउराइल बा जइसै मछरी, बिन पानी कय बिन पानी कै, ताल तलैय्या बिरवा, बिरवा, नेह, छोह कै केतना आज, झुराइल बा आपन आपन, मीत मिताई केहसे केकर, मिताई बा 'जग बैरी' सब, भइल हमारो, मीत हमार, भुलाइल बा रात अन्हरिया, घटाटोप है, हाथ पसारल, ना लउके लेकिन आस कय, दीया एगो, अबले नहीं, बुझाइल बा ✍️✍️ (रवि श्रीवास्तव, गाँव-माचा,बस्ती) ©Ravi Srivastava #Hope