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सिकन भरी आँखों से जग को निहारता हुआ। चल रहा हैं व

सिकन भरी आँखों से जग को निहारता हुआ।
 चल रहा हैं वह अपनी धुन में जीवन का कोई गीत सुन। घिसलते हुए पैरों से मातम बनाता हुआ,
अपनी परीस्थितियों  का, मद से गमकता, कुछ ढुड़ता चल रहा है; 
पर जताना नहीं चाहता। जीवन के काल-सा काला बड़ा थैला लिए, कंधे तक बिखरे हुए बालों से अपने चहरे को ढँकता हुआ ,बेतरतीब व्यस्त गलियों से निकल- निकल कर काँच के बर्तन बटोरता, कोई खजाना सा इकट्ठा करता है। पर जाने क्यों उसे निधि का हर्ष नहीं हैं । 
उदासीन आँखों से लंबी फैली बड़ी बड़ी दुकानों की तरफ निहारता हुआ, गुम हो जाता हैं किन्ही गलियों में और फिर निकल आता हैं किन्हीं गलियों से । शायद इस सिलसिले का अंत नहीं है या फिर ढल गया है वह इस दिनाय मे। #silsila #kachreuthanewala
सिकन भरी आँखों से जग को निहारता हुआ।
 चल रहा हैं वह अपनी धुन में जीवन का कोई गीत सुन। घिसलते हुए पैरों से मातम बनाता हुआ,
अपनी परीस्थितियों  का, मद से गमकता, कुछ ढुड़ता चल रहा है; 
पर जताना नहीं चाहता। जीवन के काल-सा काला बड़ा थैला लिए, कंधे तक बिखरे हुए बालों से अपने चहरे को ढँकता हुआ ,बेतरतीब व्यस्त गलियों से निकल- निकल कर काँच के बर्तन बटोरता, कोई खजाना सा इकट्ठा करता है। पर जाने क्यों उसे निधि का हर्ष नहीं हैं । 
उदासीन आँखों से लंबी फैली बड़ी बड़ी दुकानों की तरफ निहारता हुआ, गुम हो जाता हैं किन्ही गलियों में और फिर निकल आता हैं किन्हीं गलियों से । शायद इस सिलसिले का अंत नहीं है या फिर ढल गया है वह इस दिनाय मे। #silsila #kachreuthanewala