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pragatishukla9057
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Pragati Shukla

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Pragati Shukla

कोशुर( कश्मीर) 
पीर पज़ल और झेलम से घिरी हुई घाटी का हाल पुछती हु मैं बादलों से। कोशुर( कश्मीर) पीर पज़ल और झेलम से घिरी हुई घाटी का हाल पुछती हु मैं बादलों से। 





"केसरी होते बादलों से मैंने पूछा,
 कोशुर का नजारा?

कोशुर( कश्मीर) पीर पज़ल और झेलम से घिरी हुई घाटी का हाल पुछती हु मैं बादलों से। "केसरी होते बादलों से मैंने पूछा, कोशुर का नजारा?

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Pragati Shukla

सुनो सुनो! किसी से कह न देना,
राम राज हैं किसी के बारे मे बक न देना,
देखो देखो वह पकडा गया,
देखो देखो वह लटका दिया गया।
नज़र उठाओ कुछ जल रहा है
आजादी का पुलिंदा धवस्त हो रहा है।
राज पाठ कि सनक चढी है,
मंदिर का निर्माण तुम्हारी नौकरी से जरुरी है आदेश है उनका अवमानना न करना,
राम राज मे तुम विभिषण न  बनना।
लेखनी तुम्हारी जब्त हो चुकी है,
आजादी तुम्हारी गिरफ्त हो चुकी हैं।
सुशासन कि तुम बात न करना,
अच्छे दिन आएंगे,
इस जुलमे को ही सुबह शाम रटना। सुनो सुनो! किसी से कह न देना,
राम राज हैं किसी के बारे मे बक न देना,
देखो देखो वह पकडा गया,
देखो देखो वह लटका दिया गया।
नज़र उठाओ कुछ जल रहा है
आजादी का पुलिंदा धवस्त हो रहा है।
राज पाठ कि सनक चढी है,
मंदिर का निर्माण तुम्हारी नौकरी से जरुरी है आदेश है उनका अवमानना न करना,

सुनो सुनो! किसी से कह न देना, राम राज हैं किसी के बारे मे बक न देना, देखो देखो वह पकडा गया, देखो देखो वह लटका दिया गया। नज़र उठाओ कुछ जल रहा है आजादी का पुलिंदा धवस्त हो रहा है। राज पाठ कि सनक चढी है, मंदिर का निर्माण तुम्हारी नौकरी से जरुरी है आदेश है उनका अवमानना न करना, #poem #yqbaba #yqhindi #yqquote #yqpoetry #yogiadityanath #yqpolitics #righttoexpression

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Pragati Shukla

एक सफर तय किया था रंजिशो के संग,
उलफत मे चली थीं, एक हिंडोला पकड़,
जान पे बनी  थी,जीने कि वजह न थी ।
तभी कि सी ने हाथ थामा,रूक-सा गया,
दिक्कतों का फसलनामा,मुड के देखा
 पहचान मे आए, कुछ चहरे।
 उफान थम सा गया,गलियाँ बदल सी गयीं,
 रगों में दौडने लग गए मस्त परिंदे,
ऐसी लत लगाई यारी कि,
शराब कि बोतल भी फीकी पड़ गई;
 अब जीना सीखा है, हँसना सीखा है, रोना सीखा है,
 कह दुँ तो जींदगी सीखी हैं,
चार संगियों के संग उन परिंदों के संग। #friendship someoldgoodmeomries

#Friendship someoldgoodmeomries

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Pragati Shukla

जो मैं कहुँ मैं सुरमा लगता हुँ, तो क्या तुम मुझे सहमी हुई आँखों से देखोगी? मुस्कुराते हुये लब फडफडाऐगे पर क्या अदंर हि अंदर तुम्हारी रूह काँपती होगी ? क्या मैं चंदन लगा आँऊ तो तुम मुझसे इजहार करोगी ,मेरे बालों को सँवारते हुए कनखियों से मेरे होठ़ निहारोगी | जो मैं कहुँ मेरा नाम अहमद हैं राम नहीं, मैं चादर चढाता हुँ, चुनरी नहीं। तो क्या तुम मुझसे नजरें चुरा लोगी ?अपनी गली में मुझे देखते ही घर का फटक बंद कर लोगी। फर जो मैं माता की चौकी का चंदा इकट्ठा करने आऊं, तो क्या तुम व्दार खोल स्वागत करोगी ? 101 का चढावा दे, मुझे दूर तक जाते हुए निहारोगी। क्या मेरा कौम ही बंधन हैं तुम्हरा,क्या मेरी रुह का कोइ मोल नही, माटी से हि बना हुँ, मक्का मदिना का मैं रेत नहीं । जो मैं कहुँ मैं सुरमा लगता हुँ, तो क्या तुम मुझे सहमी हुई आँखों से देखोगी? मुस्कुराते हुये लब फडफडाऐगे पर क्या अदंर हि अंदर तुम्हारी रूह काँपती होगी ? क्या मैं चंदन लगा आँऊ तो तुम मुझसे इजहार करोगी ,मेरे बालों को सँवारते हुए कनखियों से मेरे होठ़ निहारोगी | जो मैं कहुँ मेरा नाम अहमद हैं राम नहीं, मैं चादर चढाता हुँ, चुनरी नहीं। तो क्या तुम मुझसे नजरें चुरा लोगी ?अपनी गली में मुझे देखते ही घर का फटक बंद कर लोगी। फर जो मैं माता की चौकी का चंदा इकट्ठा करने आऊं, तो क्या तुम व्दार खोल स्वागत करोगी ? 1

जो मैं कहुँ मैं सुरमा लगता हुँ, तो क्या तुम मुझे सहमी हुई आँखों से देखोगी? मुस्कुराते हुये लब फडफडाऐगे पर क्या अदंर हि अंदर तुम्हारी रूह काँपती होगी ? क्या मैं चंदन लगा आँऊ तो तुम मुझसे इजहार करोगी ,मेरे बालों को सँवारते हुए कनखियों से मेरे होठ़ निहारोगी | जो मैं कहुँ मेरा नाम अहमद हैं राम नहीं, मैं चादर चढाता हुँ, चुनरी नहीं। तो क्या तुम मुझसे नजरें चुरा लोगी ?अपनी गली में मुझे देखते ही घर का फटक बंद कर लोगी। फर जो मैं माता की चौकी का चंदा इकट्ठा करने आऊं, तो क्या तुम व्दार खोल स्वागत करोगी ? 1 #hindumuslim #bediya

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Pragati Shukla

कहो क्या कहते हो, सुना है आजकल पीठ पीछे बहुत बकते हो।
लाओ क्या लाए हो,पियुष के प्याले मे 
विष भर मोहनी बने आए हो? 
देखूँ क्या तोहफा है,माँ के आँचल जैसा, कफन का अंगोछा है!
कौन हो तुम?बुझाओ तो ज़रा,
अंतरात्मा को खा़क करने से पहले,
दिव्य दर्शन दिखाओ तो ज़रा।
कुंठा है क्या नाम तुम्हारा?
ईर्ष्या से क्या जन्म हो?
फिर क्रोध और स्वार्थ से पनपे हो क्या 
है तुम्हारा तोड़,कैसे होती है तुम्हारी लपटें कमजोर,
क्या गंगा मे नहाऊ?
या महाकालला को दुग्ध चढाऊँ?
या फिर सिर्फ एक बार"मैं" सिर्फ "मैं"के
बन्धन तोड "हम" में विलिन हो जाऊं। #nojoto #pragatishukla
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Pragati Shukla

सिकन भरी आँखों से जग को निहारता हुआ।
 चल रहा हैं वह अपनी धुन में जीवन का कोई गीत सुन। घिसलते हुए पैरों से मातम बनाता हुआ,
अपनी परीस्थितियों  का, मद से गमकता, कुछ ढुड़ता चल रहा है; 
पर जताना नहीं चाहता। जीवन के काल-सा काला बड़ा थैला लिए, कंधे तक बिखरे हुए बालों से अपने चहरे को ढँकता हुआ ,बेतरतीब व्यस्त गलियों से निकल- निकल कर काँच के बर्तन बटोरता, कोई खजाना सा इकट्ठा करता है। पर जाने क्यों उसे निधि का हर्ष नहीं हैं । 
उदासीन आँखों से लंबी फैली बड़ी बड़ी दुकानों की तरफ निहारता हुआ, गुम हो जाता हैं किन्ही गलियों में और फिर निकल आता हैं किन्हीं गलियों से । शायद इस सिलसिले का अंत नहीं है या फिर ढल गया है वह इस दिनाय मे। #silsila #kachreuthanewala
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Pragati Shukla

खेतों को,खलिहानों को,
तोडा स्किप करते हुए चलती हूँ,
क्यों न मैं जल्दी जल्दी घर पहुँचती हूँ।
इन ए.सी के बन्द डबों मे,
फोन और इयर फोन से खुद को जकड़ती हूँ।
क्यों मैं टाइम को स्किप करतीं हूँ? 
बेशक सफर लंबा हैं, लंबी हैं वह यादें भी,
क्यों न मैं इस nostalgia को
थोड Rewind करतीं हैं,
ज़रा चाँद से की गई वह रेस याद करती हूँ,
नहीं नहीं वक्त नही कट पाऐगा,
चलो खुद को किताबों मे आत्मलिप्त करती हूँ, ज़रा जल्दी जल्दी पढती हूँ।
पर क्यों मैं इस हड़बड़ी मे हूँ ?
शायद किसी गड़बड़ी में हूँ,
या फिर अब हर सफर,
तन्हा तय करती हूँ,
शायद इसलिए मैं जल्दी मे हूँ। क्यों न मैं जल्दी-जल्दी घर पहुँचती हूँ,
खेतों को,खलिहानों को,
तोडा स्किप करते हुए चलती हूँ,
क्यों न मैं जल्दी जल्दी घर पहुँचती हूँ।
इन ए.सी के बन्द डबों मे,
फोन और इयर फोन से खुद को जकड़ती हूँ। क्यों मैं टाइम को स्किप करतीं हूँ? 
बेशक सफर लंबा हैं, लंबी हैं वह यादें भी,
क्यों न मैं इस nostalgia को

क्यों न मैं जल्दी-जल्दी घर पहुँचती हूँ, खेतों को,खलिहानों को, तोडा स्किप करते हुए चलती हूँ, क्यों न मैं जल्दी जल्दी घर पहुँचती हूँ। इन ए.सी के बन्द डबों मे, फोन और इयर फोन से खुद को जकड़ती हूँ। क्यों मैं टाइम को स्किप करतीं हूँ? बेशक सफर लंबा हैं, लंबी हैं वह यादें भी, क्यों न मैं इस nostalgia को #Journey #yqbaba #yqdidi

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Pragati Shukla

धुंधली सी चादर हैं देखों, परत चढा रखें हजार
मनुष्य की महरूम जिदंगी पर,
लोभ का खुल चुका बजार।
कईयो चहरे लगाये फिर रहे,
ऐंठे खड़े यह नराचर।
हलाहल पी कुंठा-पक्षपात का,
समझते धन को पियूष भंडार।
ढोंग पाहुंच चुका शिखर पर
कि अब आँखें भी देतीं हैं झूठा बयान।
रिश्तों कि न कोई कीमत रह गई,
बिक गयी वह भी कौडियों के दाम,
क्या कलयुग यही कहलाएगा?
जहाँ अपना ही अपने को खाएगा,
अब कल्कि भी क्या ही बचाएगा यहाँ तो,
मानवता को मानव ही नष्ट कर जाएगा। धुंधली सी चादर हैं देखों, परत चढा रखें हजार
मनुष्य की महरूम जिदंगी पर,
लोभ का खुल चुका बजार।
कईयो चहरे लगाये फिर रहे,
ऐंठे खड़े यह नराचर।
हलाहल पी कुंठा-पक्षपात का,
समझते धन को पियूष भंडार।
ढोंग पाहुंच चुका शिखर पर

धुंधली सी चादर हैं देखों, परत चढा रखें हजार मनुष्य की महरूम जिदंगी पर, लोभ का खुल चुका बजार। कईयो चहरे लगाये फिर रहे, ऐंठे खड़े यह नराचर। हलाहल पी कुंठा-पक्षपात का, समझते धन को पियूष भंडार। ढोंग पाहुंच चुका शिखर पर #mask #kalyug #mywritings #hindirehkta

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Pragati Shukla

समाज एवं लोगों के दोगले व्यवहार पर व्यग्य हैं यह मेरी कविता  खुद कि दकियानूसी विचारधारा मे कभी कभी समाज भी फंस जाता हैं । जहाँ शांति के नाम पर लोगों कि हत्या कर दि जाती , सरंक्षण के नाम पर आदिवासियों को उनके घरों से निकालते हैं और अगर तुम सवाल उठाओ कि ऐसा क्यों हैं तो जबाव मिलता हैं कि बस ऐसा हि हैं और तुम्हें मानना ही पडेगा । यहाँ 'भगवान हैं' एक प्रकार का वय्गं है।
#yqbaba #yqdidi #yqhindiurdu #yqpoetry #doglapan #sarcasm #saritamishraquotes 
 
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समाज एवं लोगों के दोगले व्यवहार पर व्यग्य हैं यह मेरी कविता खुद कि दकियानूसी विचारधारा मे कभी कभी समाज भी फंस जाता हैं । जहाँ शांति के नाम पर लोगों कि हत्या कर दि जाती , सरंक्षण के नाम पर आदिवासियों को उनके घरों से निकालते हैं और अगर तुम सवाल उठाओ कि ऐसा क्यों हैं तो जबाव मिलता हैं कि बस ऐसा हि हैं और तुम्हें मानना ही पडेगा । यहाँ 'भगवान हैं' एक प्रकार का वय्गं है। #yqbaba #yqdidi #yqhindiurdu #yqpoetry #doglapan #sarcasm #saritamishraquotes Read my thoughts on YourQuote app at https://www.y

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Pragati Shukla

i would be side shore grass soaking in a water beneath me. #love #feelings #nature #grass #iwantedtobeloved #rehkta
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