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कहीं आजादी का जश्न था और कहीं गुलाम

कहीं    आजादी    का   जश्न   था 
और  कहीं    गुलामी  का   मातम |

किसी को घर मिलने की खुशी थी 
और किसी को घर छिनने का गम|

स्वतंत्र  ही  रहे  हमारे  विचार बस
गुलाम होते जा रहे आज भी जिस्म|

कैसा  कलयुग  आया है ये खून के 
छींटे  लगे  पड़े हैं हर  दूसरे  जिस्म|

हुकूमत की है यह बहुत पुरानी  रस्म
खून के बदले खून जिस्म के बदले जिस्म|

आंखें बंजर होगी आगे देखो क्या होगा
छोटी बच्ची से बुढ़िया का जिस्म नंगा होगा|

अब तक कोई बचाने नहीं आया होगा जब 
निकलेगी चीख़ें खुदा चीख़ों में ही दफन होगा|

"सुशील" लिख सकता है किस्से उसे क्या 
दर्द महसूस होगा, उसे क्या दर्द महसूस होगा | कहीं    आजादी    का   जश्न   था 
और  कहीं    गुलामी  का   मातम |

किसी को घर मिलने की खुशी थी 
और किसी को घर छिनने का गम|

स्वतंत्र  ही  रहे  हमारे  विचार बस
गुलाम होते जा रहे आज भी जिस्म|
कहीं    आजादी    का   जश्न   था 
और  कहीं    गुलामी  का   मातम |

किसी को घर मिलने की खुशी थी 
और किसी को घर छिनने का गम|

स्वतंत्र  ही  रहे  हमारे  विचार बस
गुलाम होते जा रहे आज भी जिस्म|

कैसा  कलयुग  आया है ये खून के 
छींटे  लगे  पड़े हैं हर  दूसरे  जिस्म|

हुकूमत की है यह बहुत पुरानी  रस्म
खून के बदले खून जिस्म के बदले जिस्म|

आंखें बंजर होगी आगे देखो क्या होगा
छोटी बच्ची से बुढ़िया का जिस्म नंगा होगा|

अब तक कोई बचाने नहीं आया होगा जब 
निकलेगी चीख़ें खुदा चीख़ों में ही दफन होगा|

"सुशील" लिख सकता है किस्से उसे क्या 
दर्द महसूस होगा, उसे क्या दर्द महसूस होगा | कहीं    आजादी    का   जश्न   था 
और  कहीं    गुलामी  का   मातम |

किसी को घर मिलने की खुशी थी 
और किसी को घर छिनने का गम|

स्वतंत्र  ही  रहे  हमारे  विचार बस
गुलाम होते जा रहे आज भी जिस्म|

कहीं आजादी का जश्न था और कहीं गुलामी का मातम | किसी को घर मिलने की खुशी थी और किसी को घर छिनने का गम| स्वतंत्र ही रहे हमारे विचार बस गुलाम होते जा रहे आज भी जिस्म| #Afghanistan #Taliban