“सोलह श्रृंगार” अनुशीर्षक में बिन तेरे हर श्रृंगार फ़िजूल़ है तेरा होना ही मेरे चेहरे का नूर है साखों पर सजता रहे नए पत्तों का श्रृंगार करते हैं हम एक दूजे से प्यार तन का गहना क्या करना वो माटी है जिसका कोई मोल नहीं मन के गहने से श्रृंगार करो