अपनी मन की इच्छाओं से हैरान परेशां होता रहता है
कभी अपनी ही ख़्यालों में गुमसुम सा पड़ा रहता है
कभी तन्हाई रास तो कभी महफ़िल की शान नज़र आता है
जीवन के झंझावातों से जूझते हुए होठों पर अपनी झूठी मुस्कान सजाए रखता है
बचपन क्या बीता उसका, कंधो को जिम्मेदारियांँ धर दबोचती हैं
जिम्मेदारियांँ पूरा करते करते अवसाद से ग्रसित हो जाता है
क्या सिर्फ़ यही था मेरा जीवन यही सोचते सोचते उसके जीवन का अंत समय आ जाता है #yqdidi#restzone#collabwithrestzone#yqrz#rzलेखकसमूह#rzwriteshindi#unique_upama#rztask396