'ना' बोल कर करने वाले... निभाने वाले हैं, सच तोलकर... झूठ नहीं सराहने वाले हैं, हमारे झूठ को सच समझते हो कितना, मुखौटे हमारे चेहरे पर लगा, हमें नकली कहते। ..... क्यों? आखिर क्यों, स्त्रियां अपनी अवहेलना करने से पीछे नहीं हटती है। सब कुछ कर के, सब सह कर, लूटी-पीटी, बची-खुची जिंदगी जीती है। कभी समाज के नाम, कभी वात्सल्य कभी प्रेम, कभी जिम्मेदारी में छली जाती है। क्या जाने विधाता ने अलग ढंग की मिट्टी में क्यों प्राण के साथ अस्तित्व डाले हैं? अस्तित्व ही क्यों! ........................ 'ना' बोल कर करने वाले... निभाने वाले हैं, सच तोलकर... झूठ नहीं सराहने वाले हैं,